सुख की झलक | Sukh Ki Jhalak
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.54 MB
कुल पष्ठ :
188
श्रेणी :
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कपूरचन्द जैन - Kapurchand Jain
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परमानन्द जैन - Parmanand Jain
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)(७ )
है--यह सर्वे मोहोदयकी कल्लोल-माला है। मोहोदयमें जो
कल्पनाएँ न हों, बे थोडी हैं. । देखो, जब स्त्री पुरुषका विवाह
होता है तब वह पुरुष स्त्रीसे कहता है कि में तुम्हारा जन्म
पयंस्त निवोह करू गा, 'ौर वह स्त्री भी पुरुषसे कहती है कि
में भी तुम्हार। जन्मपर्यन्त परिचया करू गी । इस तरह जब घिवाह
सम्पन्न हो जाता हे अर उनमेसे यदि किसीको भी बेराग्य हो
जाता है तो घर छोड कर बिरक्त हो जाते है । स्त्री विर्क्त हुई
तो ार्यिका होजाती हैं और पुरुपको विरक्तता हुई तो मुनि
हो जाता है । ता झबर बतलाइए कि वे वित्राहके समय जो एक
दूसरे से चचनबद्ध हुए थे, उसका निवाद्द कहा रहा ? इससे सिद्ध
हुआ कि यह सब माहदनीय कर्मका प्रबल उरय था । जब तक
चहद कर्माइय है तभी तक सारा परिवार और संसार है । जहा इस
कमंक्रा शमन हुआ तो वहीं परिवार फिर बुरा लगने लगता है ।
जब सीताजीका लोकापबाद हुआ और रामने सीतासे अग्नि-
परीक्षा देनेको कहा । सीता श्रपने पतिर्की झ्ाज्ञा शिरोधायें कर जब
अम्निकृस्डसे निध्कलक हो, देवोद्वारा अधित होती है
तब सीताको समार, शरीर और भोगोसे अत्यन्त बिरक्तता
जाती है । उस समय राम आकर कहते हैं. कि हे सीते ! तू
निरपराध है, धन्य है, देवों द्वारा पूजनीक है । आज मेरे
इृदयक दासू नेत्रीम छलक आए है । प्रासादोको चलकर पणित्र
करो ।अझथवा अपने लदमणकी ओर दृष्टिपात करो । अथवा दनुमान
पर करुखा कर, जिसने स :टक्े समय सद्दायता पईचाई । अथवा
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