मानक हिंदी कोश खंड 3 | Manak Hindi Kosh khand 3
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
47.46 MB
कुल पष्ठ :
678
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)धरना
स्त्री० [हिं० थूरना |] थूरने की क्रिया था भाव ।
थूरना--स० [स० थुवर्ण मारना] १ अच्छी तरह कुटना। २
अच्छी तरह मारना-पीटना। २. खूब कसकर भरना । ४ खूब कस
कर और भर पेट भोजन करना । (व्यग्य) उदा०--कंसी गधी हो,
बस्चो का खाना हो हुसती। रातिब तो तीन ट्ट्र, का जाती हो थूर
आप ।--जान साहब ।
थूल--वि० [स० स्थल] १ माटा। भारी। २. भहा।
थूला--वि० [स० स्थल] [स्त्री० थूली] १. मॉटा-ताजा। हृष्ट-
पृष्ठ । २ भारी और मोटा |
थली--स्त्री |हि० थूला मोटा] १ किसी अनाज के दले हुए मोटे
दाने । दलिया। २. पकाया हुआ देलिया। 3. सूजी ।
थूबा--पु०- थुआ। (देखें)
थूद्डड़--पुभ- यहर ।
धूहर--पु० [स० स्थल] एक प्रकार का झाड या पौधा जिसमे
लचीली टहनियों की जगह्ट प्राय बड़ी गुल्ली या छोटे डडे के ऑकार के
भोटे और गॉठदार इठल निकलते है और जिसके पत्ता में से एक प्रकार
का कड़ आ दूध निकलता है। सेहुड।
थूहा--पु० |स० स्तूप, प्रा० थूब] [स्त्री० अल्पा० थूही | १ छोटा
टीला। कूह। ४ ढेर। राशि। 3. केभों आदि पर मिट्टी के बने
हुए वे दोना खभे जिन पर वह लकड़ी या लोहे का छड़ रखा जाता है
जिसमें गराडी पहनाई हुई होती है ।
थेई-धेई---स्त्री- | अनु० | नृत्य का साल सूचक शव्द। ९
थिरककर नाचन की मुद्रा ।
क्रि० प्र०--करना।
थेगली--स्त्री० -धिगली ।
थेथर!--वि० [स० शिथिल | १ बहुत अधिक थका हुआ। २ जो
कष्ट, दु्दशा आदि भोगता-भोगता हद से ज्यादा तग या परेशान हो
गया हो।
थेथरई'--स्त्री० [हि थेथर | १ थेथर होने की अवस्था या भाव ।
२. निलेज्जतापूर्वक किया जानवाला दुराग्रह। ३. अपने दोषों, भूलो
आदि पर ध्यान न देकर निलंज्जतापूर्वक सब के सामने सिर उठाकर
उद्दडतापूर्वक की जानेवाली बात ।
थेबा--पु० [दिेश०] १ अंगूठी में जड़ा हुआ नगीना। २. अँगूठी के
ऊपर लगा हुआ वह घर जिसमें नगीना जड़ा या बेठाया जाता है।
थे--अव्य० [पु० हि०्ते! से। उदा०--वेद बड़ कि जहाँ थे आया ।--
कबीर ।
चेचा--पु० [देश०] खेत में बनी हुई मचान का छप्पर ।
थे-थे--अ० य० [स० अव्यक्त हाब्द ] नृत्य, वाद्य आदि का अनुकरणात्मक
बाब्द ।
घैला--पुर [स० स्थल कपड़े का घर] [स्त्री अल्पा० थेली] १
कपडे या ऐसी ही और किसी चीज के लम्बे टुकड़े को दोहरा करके और
दोनो ओर से सीकर छोटे बोरे की तरह बनाया हुआ वह आधान जिसमे
चीजें भरकर रखते है। एक प्रकार का झोला।
सुहा०--(किसो को) घेला करना -मारते-मारते बेदम कर देना |
बिदषेष--पहलें कहीं-कही टाट के बडे थैलों मे या बोरो से अपराधियों
देर
ननथनाणण नासा था
थिरक
पे
1
थोडा
को भरकर और ऊपर से थैले का मुंह बद करके घूँसो, ठोकरा आदि से
खूब मारते थे। इसी से यह मुहावरा बना है।
२. पायजामे का वह भाग जो जघे से घुटने तक और देखने में बहुत
कुछ उक्त आधान की तरह होता है।
थेली--स्ती० [हि० थेला] १ छोटा थैला। २
छोटी थैली जिसमें रुपए आदि रखें जाते है।
मुहा०--भैली खोलना था थंली का मंह खोलना यथेष्ट धन व्यय
करने के लिए प्रस्तुत होना ।
३ वह धन जो थैली में भरकर किसी बड़े आदमी को समपित किया
जाता हैं। जैसे--काग्रेस अध्यक्ष को वहाँ दस हजार की थैली भेट की
गई है। ४ उक्त आकार-प्रकार की कोई ऐसी चीज जिसके अदर कोई
दूसरी चीज सुरक्षायूवंक बद हो अथवा रहती हो। जैसे--गर्भकाल
में बच्चा हिहली की बैली में बद रहता है।
घेलोदार--पु० [हि० थैली :फा० दार] १ वह आदमी जो खजाने में
रुपयों की थेलियाँ उठाकर रखता या लाता है। २ सहवीलदार।
रोकडिया।
थेली-बरदारी--स्त्री+ [हि० शैली । बरदारी] दूसरों की थैली (या धन)
उठाकर इधर-उधर ले जाना ।
थोक--पु० [स० स्तोक या स्तोमक , प्र० थोवंक, हि० थोक] १ एक
ही नरह की बहुत सी चीजों का ढेर या राणि। थाक । (देखे)
क्रि० प्र०--करना ।--लगाना।
५. चीजे बेचने का वह प्रकार जिसमे एक ही तरह की बहुत-सी चीजे
एक. साथ या इकट्ठी और प्राय दूकानदारों या बड़े ग्राहकों के हाथ कम
मुनाफे पर बेची जाती है। 'स्ुदरा' या 'फूटकर' का विपर्याय । 3
जस्था। झुड। दल। ४ वह स्थान जहाँ कई गाँवों की सीमाएँ
मिलती हो। ५ जमीन का वह बड़ा टुकड़ा जो एक ही मालिक के
हाथ में हो।
धोकदार--पु० |हि० थोक « फा० दार)] वह व्यापारी जो थोक का
कार्य करता हो।
थोडा --स्त्री० [हि० थोड़ा] १ थोड़े होने की अवस्था या भाव । कमी ।
जैसे--यहाँ खाने-पीने की कोई थोड़ नहीं है। २ ऐसा अभाव या
कमी जिसकी पूरति को आवश्यकता जान पड़ती हो। जैसे--हमारे
यहां भी बल्चों की थोड है। (पश्चिम)
थोडन--पु० [स० थुडू (ढॉकना ) | ढॉकने या लपेटने की क्रिया या भाव।
थोडा--वि० [स० स्तोक, पा० थोअ | डा (प्रत्य० ) | [स्वी० थोड़ी]
१ जो मात्रा, मान आदि मे आवश्यक या उचित से बहुत कम हो।
अल्प । जैसे--यह कपड़ा कुर्ते के लिए थोडा होगा ।
मुहा०-- (व्यक्ति का )थीड़ा थोड़ा होना--लजिजित या सकुचित होना
या होता हुआ जान पड़ना ।
पद--चबोड़ा बहुत अधिक या यथेष्ट नहीं। कुछ-कुछ । थंड़े में -
सफ्षेप में। थोड़े ही- - बिलकुल नहीं । जैस--हम वहाँ थोड़े ही गये थे।
२. केवल उतना, जितने से किसी तरह काम चल जाय। जैसे---कही
से थोडा मेंमक ले आओ ।
कि० बि० अल्प मात्रा या मान में। कुछ। जरा। जैसे--थोडा
ठहरकर चले जाना ।
एक विधोध प्रकार की
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