कल्याण | Kalyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
49.19 MB
कुल पष्ठ :
740
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
चिम्मनलाल गोस्वामी - Chimmanlal Goswami
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हनुमान प्रसाद पोद्दार - Hanuman Prasad Poddar
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)देर
# पुराण परमाजेय न्रह्मथिधासर परम् #
[ अच्याय गे०४
दो सो चारवोँ अध्याय
धर
मासापबास-ब्रत
अम्लिदेव कहते हैं--मुनिश्नेष्ठ वसिष्ट ! अय मैं तुम्हारे
सम्मुख सबसे उत्तम मासोपबास-श्रतका वर्णन करता हूँ ।
वैष्णव-यशका अनुष्ठान करके; आचार्यकी आजा लेकर;
कृच्छू आदि श्रतोंसे अपनी शक्तिका अनुमान करके मासोपवास-
श्रत करना चाद्यि । वानप्रस्थः संन्यासी एव विधवा स्त्री-
इनके लिये मासोपवास-ब्रतका विधान है ॥ १ २ ॥|
आधिनके झुक्क पक्षकी एक्रादशीको उपवास रख्वकर तीस
दिनोंके ल्यि निम्नलिखित सकल्प करके मासोपवास-ब्रत प्रहण
करे--भश्रीधिष्णो ! में आजसे लेकर तीस दिनतक आपके
उत्थानकालप्यन्त निराददार रदकर आपका पूजन करूँगा ।
सबब्यापी श्रीहरे ! आधिन झुक्क एकादशीसे आपके उत्थानकाल
कार्तिक झुक्क एकादशीके मध्यम यदि मेरी ग्रत्यु हो जाय तो
( आपकी कृपासे ) मेरा त्रत भट्ट न दो# ।' श्रत करनेवाला
दिनमें तीन वार खान करके सुगन्धित द्रव्य और पुष्पोंद्वारा
प्रातः मध्याह्म एव सावंकाल श्रीविष्णुका पूजन करे तथा
बिष्णु-सम्बन्धी गानः जप ओर ध्यान करे । ब्रती पुरुष
बकवादका परित्याग करे और धनकी इच्छा भी न करे । वह
किसी भी ्रतहीन मनुष्यका स्पर्श न करे और शाख्रनिषिद्ध
कर्मोमे लगे हुए लोगोंका चालक--प्रेरके न बने । उसे
तीस दिनतक देवमन्दिरमें ही निवास करना चाहिये । ब्त
करनेवाला मनुष्य कार्तिकक झुक्कपक्षकी द्वादशीको भगवान्
श्रीविष्णुकी पूजा करके ब्रांझणोंको भोजन करावे । तदमन्तर
उन्हें दक्षिण देकर और स्वय पारण करके ब्रतका विसर्जन
करे । इस प्रकार तेरह पूर्ण मासोपवास-ब्रतोंका अनुष्ठान
करनेवाल्म भोग और मोक्ष--दोनोंको प्राप्त कर लेता है ॥२-९॥।
( उपयुक्त विधिसे तेरह. मासोपवास-ब्रतोंका अनुक्ान
करनेके बाद रत करनेवाला श्रतका उद्यापन करे । ) वह वैष्णव-
यश करावे: अर्थात् तेरद आराह्मणोंका पूजन करे । तदनन्तर
उनसे आशा लेकर किसी ज्राह्मणको तेरह ऊर्ध्वव्तरः अधोषस्र)
पात्र: आसन» छत्र: पवित्री: पादुकाः योगपट्ट और यशोपवीतों-
का दान करे ॥ १०-१२ ॥
तत्पश्चात् शय्यापर अपनी और श्रीविष्णुकी स्वर्णमयी
प्रतिमाका पूजन करके उसे किसी दूसरे ब्राझणकों दान करे
एव उस ब्राझ्मणका वस्त्र आदिसे सत्कार करे । तदनन्तर श्रत
करनेवाला यह कददे--्मैं सम्पूण पापोंसे मुक्त होकर आइाणों
और श्रीविष्णु भगवान्के कृपा-प्रसादसे विष्णुलोकको जाऊँगा ।
अब मैं विष्णुस्वरूप होता हूँ. ।* इसके उत्तरमें आझणोंको
कहना चाहिये--'देवात्मन ! तुम विष्णुके उस रोग-झोक-
रहित परमपदकों जाओ-जाओ और वहाँ विष्णुका स्वरूप धारण
करके विमानमें प्रकादित होते हुए स्थित होओ ।? फिर श्रत
करनेवाला द्विजोको प्रणाम करके वह शब्या आचार्यकों दान
करे । इस विधिसे ब्रत करनेवाला अपने सो कुछोंका उद्धार
करके उन्हें विष्णुलोकमे ले जाता है. । जिस देशमें
मासोपवास-ब्रत करनेवाला रहता है; वह देश पापरहित हो
जाता है । फिर उस सम्पूर्ण कुलकी तो बात ही क्या है;
जिसमें मासोपवास-त्रतका अनुष्ठान करनेवाला उत्पन्न हुआ
होता है । श्रतयुक्त मनुष्यको मूर््छित देग्वकर उसे घरतमिश्रित
दुग्धको पान कराये । निम्नलिखित वस्तुएं श्रतकों नष्ट नहीं
करतीं--न्राझणकी अनुमतिसे अरहण किया हुआ हृविष्य;
दुग्थ; आचार्यकी आज्ञासे छठी हुई ओषधिः जल; भूल और
फल । इस ब्रतमें भगवान् श्रीविष्णु ही महान ओषधिरूप
हूं--इसी विश्वाससे ब्रत करनेवाछा इस ब्रतसे उद्धार पाता
है ॥ १६-१८ ॥
इस प्रकार आदि. आग्नेय महापुराणमें «्मासीपदास-ब्रतका बणन नामक दो सौ चारबां अध्याय पूर हुआ ॥ २०४ ॥
आर दर.
# अथप्रदृत्यद॑ विष्णों यावदु्यानक तव । अर्चये त्वामनदनन्ू दि. यावलिंशदिनानि तु ॥
कार्तिकाश्विनयोविंष्णो
थावदुरवानक तब । श्रिये यथन्तरालेड ब्रतभन्ञो न मे भवेत् ॥
( मप्नि+ २०४ | न ण )
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