भारतीय विद्या भाग 2 | Bhartiya Vidhya Bhag 2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अंक १] भरतेश्वर बाइुबलि रास - किंचिस्‌ प्रास्तबिक [ ७३ प्रस्तुत रासनी भाषा आदिना खरूपना विषयमां हूं अहिं विशेष चची करवा नथी इच्छतो। एनी भाषा अने डैलीनुं खरूप, ते समयनी अर्थात्‌ ते सैकानी अने तेनी आसपासनी बीजी उपलब्ध कृतिओ - जेवी के, उक्त जंबूस्वामिरास, तथा विजयसेनसूरि कृत रेवंतगिरिरास, अज्ञातनाम कृत आबूगिरिरास आदि -ना जेवी ज छे । छन्दोरचना पण लगभग ए अन्य कृतिओमां मठी आवे छे तेवी ज छे । दोहा, वस्तु अने चउपड जेवा ते समयना सौथी प्रसिद्ध अने प्रचलित मात्रामेठ छन्दो उपरांत अमुक लढणमां गवाय एवा ढाठ्ववाद्ठ रागना छन्दोनों पण आमां उपयोग थएलो छे, जे छन्दोने कता पोते रासा छन्दों कहे छठे । द्रेक ठवणि पढी जे छन्दोवाठी पंक्तिओ- कडीओ आते छे ते जुदा जुदा रागमां गवाय एवां आ रासाछन्दों छे । रासगत कथावस्तु जैन साहित्यमां बहु ज॒सुप्रसिद्ध छे । युगादि पुरुष भगवान्‌ ऋषभदेवना पुत्र नामे भरत अने बाहुबलि- ए बंने वच्चे राजसत्ताना खी कारमाटे परस्पर जे विग्रह थयो अने तेनो जे रीते अंत आब्यो तेनुं एमां वर्णन करवामां आव्युं छे । कविनी शोली ओजसू भरी छे अने राब्दोनी झमक पण सारी छे । वीर रसनो वेग वधारे विकसित ढागे छे। कथाना प्रसंगो बहु ज संक्षेपथी व्णववामां आव्या छे तेथी कविने पोतानो काव्यरस खिलववानों अहिं अवकादा ज नथी, एटले एनी काव्यशक्तिनो विशेष विचार करवो अप्राप्त छे । छतां परद्द आस किणि कारणि कीजइ, साहस सइवर सिद्धि वरीजइ । हीउं अनइ द्ाथ हस्थीयार, पह जि वीर तणउ परिवार ॥ १०६ ॥ आवी जे केटलीक हृदयंगम उक्तिओ मठी आते छे ते उपरथी एनी रसमय वाणीनी कल्पना यरटिकिचित्‌ थई दाके तेम छे । जे बुद्धिरास आ रासनी पछी ६३ कडीनो एक टुंको प्रबंध नामे बु द्धि रा स आपवामां आध्यो छे, जेना कर्ता पण शालिभद्र सूरि ज छे । जो के कताए एमां, जेम “भरतेश्वर बाहुबठि रास'मां आप्यां छे तेम, पोताना गच्छ अने गुरु आदिनां नाम नथी आप्यां, अने तेथी सर्वथा निश्चितरूपे तो एम न ज कही शकाय के आ रास पण ए ज शालिभद्र सूरिनी कृति छे । कारण के शालिभद्र सूरि नामना एक - बे बीजा पण प्रंथकारों यई गया छे अने तेमणे पण गुजराती




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