शांति के सोपान नानेश वाणी - २२ | Shanti Ke Sopan Nanesh - Vani 22

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Shanti Ke Sopan Nanesh - Vani 22 by आचार्य श्री नानेश - Acharya Shri Nanesh

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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शांति के रीपान/13 हों, किन्तु सभी प्रकार की शिक्षा, जिसमें धर्म की शिक्षा भी सम्मिलित थी, योग्य आचार्यों द्वारा शिष्यों को प्रदान की जाती थी। आखिर मैं इस द्वारिका का वर्णन आपने समक्ष क्‍यों रख रहा हूँ? इसलिए, कि आप भी अपने नगर के विषय में विचार कर सकें। आप सोचें कि क्या आपने अपने बालकों की शिक्षा के लिए समुचित व्यवस्था कर रखी है? व्यावहारिक एवं आर्थिक समस्या की पूर्ति के लिए स्कूल-कालेज तो है, किन्तु क्या उतना ही पर्याप्त है? क्या अपनी सन्तान का नैतिक धरातल ऊपर उठाने का गम्भीर दायित्व आपका नहीं है? क्या आप अपने इस दायित्व को पूर्णतया निभा रहे है? क्या इस नगर में धार्मिक शिक्षण का पूरा प्रबन्ध है? कया यहाँ उपस्थित कोई व्यक्ति धार्मिक शिक्षण ले रहा है? आप सब मौन हैं। अथवा मौन प्रकट कर रहा है कि ऐसी व्यवस्था आपने नहीं कर रखी है। तो यही चिन्तां की बात है। आप इस कमी का अनुभव ही नहीं कर रहे हैं। अपने बालकों को केवल आर्थिक-शिक्षण देकर आप अपने कर्तव्य की इतिश्री मान रहे हैं। किन्तु यह आपकी भयानक भूल है। आप नहीं. जानते, आप सोचते तक नहीं कि आपके बालक भविष्य में क्या करेंगे? उनके जीवन का क्या होगा? आपकी शक्ति, आपका पाप, धन में व्यय हो रहा हो तो वह क्या चिन्ता और दुःख की बात नहीं है? आज राष्ट्र की जो स्थिति है वह आपसे छिपी हुई नहीं है। उसका कारण क्या हैं? उसका सबसे बड़ा कारण यही है कि आप अपने बालकों को अपने छात्रों को, इस राष्ट्र की भावी पीढ़ी को उचित शिक्षा नहीं दे रहे हैं और परिणामस्वरूप वे अनैतिक जीवन की ओर आँखें बन्द करके भागे चले जा रहे हैं- उस दिशा में जिस दिशा में अन्धकार के भयानक गर्त हैं। लि द्वारिका नगरी का वर्णन मैं आपके सामने इसी उद्देश्य से कर रहा हूँ कि आप यह भली प्रकार से जान सकें कि उस नगरी के क्या विशेषताएँ थी और उसे स्वर्ग के समान क्यों माना जाता था? द्वारिका नगरी को स्वर्ग की उपमा देने का तात्पर्य यही है कि वहाँ के निवासी धर्मनिष्ठ थे, उनका आचरण ऐसा श्रेष्ठ और पवित्र था कि देवता भी उसे देखकर ईर्ष्या कर उठें। और इस श्रेष्ठता के मूल में जो वात थी वह था धर्मिक शिक्षण। वहाँ के निवासियों को धर्म तथा नैतिकता




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