हिंदी भाषा का उद्गम और विकास | Hindi Bhasha Ka Udgam Aur Vikash
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20.07 MB
कुल पष्ठ :
632
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दा
श्रथवा चुन्देलखंडी २५४-२द३; पूर्वी-हिन्दी २६३-२६५; श्वधी २६५-
९६८; गद्दोराबोली र६८; जूड़रवोली २६८-२६६; श्रवघी की विशेष-
ताएँ ६६-२७०; अवधी की उत्पत्ति २७०-२०२; अवधी की उसकी श्न्य
. बोलियों से तुलना; २७२-२७६; श्रवधी का महत्व २७६-२७७; श्वघी की
विभापषाएँ तथा संक्षि्त-व्याकरणु २७७-२८२; बचेली र८र-२८७; छत्तीसगढ़ी;
लरिया या खल्टाही रद७-२४४; बिहारी (भाप) का नामकरण, र६४-२६४४
विद्दारी तथा वंगाली संस्कृति २६५-२६६; बिहारी-भापषा की उत्पत्ति २६६-२६६;
विद्दारी तथा हिन्दी २६६-३०४; विद्दारी-चोलियों को श्रान्तरिक एकता ३०४-
दश० |
उत्तर-पीठिका ३११-४१९२
सातवाँ अध्याय ३१३-३६६
हिन्दी की ध्वनियाँ--३१३; स्वर-ध्वनियाँ, ३१३-३१४; व्यंजन-
ध्वनियाँ ३१४; स्थान श्र प्रयत्न के अनुसार ध्वनियों का विभाजन ३१४-३१६;
प्रधान-स्वर ( (.घातठा091 ए०पटाड ) २१६-३१७; प्रधान-स्वर को निर्धारित
करने की विधि ३१७-३१८; हिन्दी के मूल-स्वर ३१८-३२०; फुसफुसाहट वाले
स्वर (४४ शाइफृहा6त ए०घ5 ) देर०-३२१; अनुनासिकस्वर २३२१-३२
सन्ध्यक्तर त्रथवा संयुक्त-स्वर ३२२-३२३; व्यल्न, स्पशं-व्यंजन ३२९३-३२
त्रानुनासिक-व्य॑जन ३ २४-३२४, पाश्विंक ३२४; लु ठित-व्यज्नन ३२५; उत्क्तिप्त
या ताइनजात ३२४; संघर्पी-व्यंजन ३२६; अद्ध-त्वर या श्रन्तस्थ ३२६-३२७;
स्व॒राघात ३२७; स्वराघातयुक्त अत्तर के स्वर (श्र) वि्व्त श्रक्षर में ३२७-३३०
(रा) संदत्त अक्षर में ३३०-३३३; ददि-त्वर ३३४-३३५; श्रादि '्रार तथा
दि झ्रच्र का श्रा ३३५४; पा० भा० श्रा० के संयुक्त-व्यंजनों से पूर्व का “शा?
३३५-३३६; पाचीन-भारतीय-श्राय॑-भाषा के श्रादि तथा आदि श्रत्तर के द, ई
३६-३३७; ग्राचीन-भारतीय-्राय-भापा के तथा. मध्यकालीन-भारतीय-श्राय-
भापा के संयुक्त-व्यझ्न के पू्व॑वर्त्ती रादि एवं श्रादि अक्षर के उ; ऊ ३३७; प्रा०
मा० ० का आदि एवं द्ादि-श्रचर-गत 'ए? 'ऐ” ३३७-३ रे; प्रा० भा० आ० के
ब्यादि तथा त्रादि-ग्रच्चर-गत पत्र त्तरौ” ३३८; अन्त्य-त्वर ३ दे०- ३४१५ शब्दों के
त्ाम्यन्तर-स्वर, श्रसम्पकत-स्वर ३४१-३४२; प्रा० भा० श्ा० का झाम्यन्तर द्सम्प
कफित “श्र ३४२-३४३; प्रा० मा० श्रा० का दसम्पर्कित-याम्यन्तर 'इ; ई” ३४३;
प्रा०्भा० श्रा० का श्रसम्पर्कित 'उ; ऊ' दे रे-३४४; प्रा ० भा० ० का झ्सम्पर्कित
जन
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