अशोक वैद्य विशारद गाइड खंड 1 | Ashok Vaidh Visharad Gaid Khand 1
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
16.58 MB
कुल पष्ठ :
439
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१० भ्रज्नोक देध-विशारद गाइड
जाने पर थकावट युक्त हो जाती हैं तो अपने विपयों से हट जाती हैं श्रौर
मनुप्य सो जाता है । जव संज्ञावाही स्रोतों में तमोगुणी कफ प्राप्त हो जाता है
तब मनुष्यों को अजागरणी तामसी निद्रा श्राती है। सुधुत का यह कथन है,
कि हृदय देहधारियों का चेतन स्थान कहा गया है। उसमें तम व्याप्त होने
यर दटघारियों में नीद प्रविप्ट होती है । निद्रा का कारण तम शरीर जागरण
का कारण सत्व कहा गया है श्रौर या इन दोनों का सबसे बड़ा कारण स्वसाव
ही कहा जाता है । सुख, दुख, पुष्टि, कशता, बल, निर्चलता चपता, नपुंसकता,
आान-ग्रज्ञान, जीवन श्रौर मरण--सब निद्रा के अधीन है। यथा समय की निद्ठा
पृष्टि, चल, उन्ताह, भर्निदीप्ति, सत्त्द्रिता श्रीर धातु स्पग्य करती है। चरक
ने यहू सम्पूर्ण स्पप्ट कर दिया है कि जिस प्रकार देह व्यापार के लिए भोजन
ग्रावक्यक है, उसी प्रकार सुखदायी निद्दा मी 1 मिंद्ा का समय रत्त है । भोजन
के वाद हुत्की निद्रा वात्तफ्त्त नाथक है, दारीर में पुष्टि व सुख की उतत्ति
होती है । निद्रा के अनेक भेद है। एक मत से उह तमोत्पनन, कफोसपन
मानसिगा-श्रमोत्पन्न, श्रागन्तुज, व्याधि की श्रनुगामिनी एवं रात की स्वासाविकी
निद्रा छः प्रकार की है । अनुचित निद्ा से मनुप्य को अवद्य बचना चाहिए ।
असमय सोने से मोह, ज्वर, शरीर में गीलापन (स्तेमित्म), नासारोग
शिर:शुल, जी मिचलाना (हल्लास) , सोतोरोध श्रौर मंदार्नि उत्पन्न हो जाते
हैं। यह भी विचारणीय है कि भोजन करते ही सो जाने से कफ श्रम्ति का
नाक कर डालता है। सारांशत: रात्रिज्ञागरण एवं दिन मिद्रा त्याग दे !
माचाएु्वेक सेवन हो । राधि-जागरण रूक्ष दिवास्वप्त स्निग्ध होता है । माव-
प्रकाश के श्रतुसार पिं्तनाशनार्थ शयन अच्छा है। कफ, मेद, विप, पीड़ित
मनुष्यों के लिए जागरण पथ्य है 1 वात पित्त वृद्धि, मनस्ताप, क्षय एवं श्रमिधात
से मिद्वा नाश होती है । पुन: नीद लाने के उपाय प्रिया श्रालिंगल, निश्चि्तेता,
कौर्य सम्पूर्णता हैं । साथ ही मालिंय, उवटन, दही युक्त झालि चावल, दूध,
गथ, मानसिक सुख, मनप्रिययन्ध, शब्द, मदन, सुशाय्या, नेत्रों का तपंण झादि
भी करते हैं।
आधुनिक मत ः
परस प्रकार निद्रा के सुशुत, वाग्मट्ट तथा जरक से विभिन्न म्रेद बताए हैं।
घ्राधूतिक दृष्टि से निद्रा के स्वरूप पर विचार किया जावे तो ज्ञात होगा कि
User Reviews
No Reviews | Add Yours...