व्यवहार शास्त्र | Vyavhar Shastra
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7.88 MB
कुल पष्ठ :
278
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)टीम के उपदेशप्रद दोहे
कदली; सीप, सुजंग-मुख्व, स्वाति एक शुन तीन ।
जैसी संगदि बेठिए, तैसोई फल दीन ॥
काल परे कछु घर दै; काज सरे क्छु और ।
रद्विनिन भैंचरी के सए,; नदी सिरावत सौर ॥
छाम न काहू आवई, मोल रद्दीम न लेइ।
बालू टूटें धाज को, सादवय चारा देह
केसे निचे निबल जन, फ्रि सबलन सों सेर।
रदिमिस बसि सागर थिपे; करत मंगर सों बेर ॥
कोन घड़ाई जलवि मिछि; यंग साम भों घीम।
कद्दि की प्रसुवा न्दि घटी, पर घर गए रद्दीमस ॥
सैर; खूत; खाली खुसी, बैर, भोतिं, सदपान 1
रदिमन दावे ना दें, जानत सकठ जददास ॥
गरज 'आापनी श्रापसों, रहिमन कही न जाय ।
जैसे छल की झूलदथू पर-घर जात जाय |
शुव हे लेत रद्दीम जन; सलिल कूप ते काइ़ि 1
कुपहु दे कहूँ दोत दै, मन काट को वाद ॥
छिमा घड़व को चाहिए, छोटेन को इउतपात ।
का रद्दीम दरि को घट्यो, जो श्रगु सारी छात ॥
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