व्यवहार शास्त्र | Vyavhar Shastra

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Vyavhar Shastra by पं. रामानुग्रह शर्मा व्याम - Pt. Ramanugrah Sharma Vyas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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टीम के उपदेशप्रद दोहे कदली; सीप, सुजंग-मुख्व, स्वाति एक शुन तीन । जैसी संगदि बेठिए, तैसोई फल दीन ॥ काल परे कछु घर दै; काज सरे क्छु और । रद्विनिन भैंचरी के सए,; नदी सिरावत सौर ॥ छाम न काहू आवई, मोल रद्दीम न लेइ। बालू टूटें धाज को, सादवय चारा देह केसे निचे निबल जन, फ्रि सबलन सों सेर। रदिमिस बसि सागर थिपे; करत मंगर सों बेर ॥ कोन घड़ाई जलवि मिछि; यंग साम भों घीम। कद्दि की प्रसुवा न्दि घटी, पर घर गए रद्दीमस ॥ सैर; खूत; खाली खुसी, बैर, भोतिं, सदपान 1 रदिमन दावे ना दें, जानत सकठ जददास ॥ गरज 'आापनी श्रापसों, रहिमन कही न जाय । जैसे छल की झूलदथू पर-घर जात जाय | शुव हे लेत रद्दीम जन; सलिल कूप ते काइ़ि 1 कुपहु दे कहूँ दोत दै, मन काट को वाद ॥ छिमा घड़व को चाहिए, छोटेन को इउतपात । का रद्दीम दरि को घट्यो, जो श्रगु सारी छात ॥




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