विधवा विवाह मीमांसा | Vidhva Vivaha Mimansa

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वेद्मन्त्राधेंप्रकरणम्‌ ॥ पर को “किया ससभ कर (“वसथः ) वसते हो ऐसा शर्थे लिखा है सो सनसनानी कतपना शास्त्र विरुद्ध है। वस्तोः:-का ये यहां सब मकार दिन करना ही ठोंक हैं । शोर ( ऊूपतुः ) क्रियाका झथे.भी दसते हो ऐसा ही. किया है। इस का ण स्वा० द० के लेखमें दूसरा पुनरुक्त दोष भी है । तथा श्च्ति- ना पद्का थे विवादित खी . पुरूष किया - यह भी शाख्रं- म्साणों से तथा युक्ति से विरुद्ध मन. साना कल्पित थे है । झन्य भी कई अशुद्धि स्ता० द० से झथ में नि्विकल्प हैं ॥ यह सन्च नियीगसें लगाया जाय इसकेलिये नियोग मा नने वालोंके निकट कुछ भी झुवूत नहीं है ( दिधवेव देवरस्‌) कैवल एक ही दुषप्टान्त वाक्य ऐसा था जिसमेंसे कुद खेंच खांच करते सों उसकी शास्दानुकूल ठीक सत्य २ सरुंगति हमने लगा दो है । ( झुद्दस्विटटषए० ) यह मन्त्र निरुक्त ० ३ खं? ९४ में शी छाया है । वहां भी नियोग का कुछ नास निशान नहीं है.। हमारी संज्ति लिसक्तओे सब था शनुकून है । सब से च- ्तम कक्षा तो यह है कि कन्पा झच्छी घ्मत्तिप्ठ घर्मंतत्वको जानने वाली चत्तमकोटि की पत्तित्रता हो तो वाग्दान हो लाने पर मी पतिके सरजानेपर अन्य पुरुषके साथ विवाह न. करे छौर शासरणादु श्रह्नचारिणो रहकर तप करती हुईं श- रीर त्यागे तो बड़ों पुयय अवश्य है। पर ऐसी झसंडय सिियों से कोई कभी हो सकती, है । उसे सहएसारतके साविच््युपा- शूयानमें लिखा है कि जब सत्यवान्‌के साथ साबित्रीने लि- वाइ करना स्वीकार करलिया तब देवयोगसे नारदूजी श्ाये ्र साबिन्नीके-पितासे .बातचीत हुई तब-- नारद्जीने कहा कि एक बे से भीतर सुक दिन सत्यवानु सर जायया इस लिये छापकी कन्याका विवाह सत्यवानके साथ नहीं होना चादहिये ! ऐसा झुनकर सावित्री के पिता राजाकों भी बड़ा खंद हुआ' तब कन्याकों बुलाकर नारद्जी श्र कन्याके पिता दोनोंने कहा कि बेंटी ! तू सत्यवानुक साथ विवाह करनेका




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