मनोविज्ञान और आरोग्य | Manovigyan Aur Aarogya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8.63 MB
कुल पष्ठ :
210
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दूसरा प्रकरण
मानसिक दन्द्
मनुष्य को दो प्रकार की लड़ाई सदा लड़ते रहना पढ़ता हैं एक
बाहरी और दूसरी भीतरी । इस लड़ाई के लड़ते रहने मै ही जीवन है।
इसी से उसकी इच्छाशक्ति चरित्र अ्रथवा व्यक्तित्व का गढ़न होता है ।
जो व्यक्ति इन लड़ाइयो से भागता है वह अपने जीवन को भार रूप बना
लेता है । बहादुर बनके जीना ही जीना है। भययुक्त होकर जीना
मृत्यु ठुल्य है |
उपयुक्त दो प्रकार वी लड़ाइयों का त्ापस का घनिष्ट सम्बन्ध है ।
बाहरी लड़ाई मै विजय मनुष्य को. कुछ दूर तक श्रान्तिरिक विजय प्राप्त
करने का सामर्थ्य प्रदान करती है । युरुप के कुछ विद्वानों का मत है कि
तआत्म-विजय का सर्वोत्तम उपाय श्रपने आपको शारीरिक चास देंने के कार्य
मे न लजाकर किसी रचनात्मक काम में लगाना है। ऐसे काम को पूरे
करने मैं मनुष्य को श्रनेक प्रकार का आत्म-सयम करना पड़ता है और
इससे उसकी पाशविक प्रच्नत्तिया अपने-आप ही उसके काबू मै श्रा जाती
है। इस प्रकार उन प्रद्नतियों की शक्ति का सदुपयोग अथवा उदात्तीकरण
दो जाता है । मानसिक शक्ति प्रकाशन से समाप्त होती है श्रौर दमन से
वह संचित हो जाती है । फिर वह विकृत रूप से रोग अथवा अपराध में
नकलती है ।
हम श्रपनी बाहरी लड़ाई में कभी-कभी परमात्मा की सहायता की
श्रपेक्षा करते हैं । परमात्मा वह तत्व है जो मनुष्य की बुद्धि की पहुंच के
बाहर है । यह नई शक्ति हमे सफल बनने के लिये दे देता है। किसी
प्रकार की झ्नायास सद्दायता परमात्मा की सहायता मानी जाती है ।
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