मनोविज्ञान और आरोग्य | Manovigyan Aur Aarogya

Book Image : मनोविज्ञान और आरोग्य  - Manovigyan Aur Aarogya

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about लालजीराम शुक्ल - Laljiram Shukl

Add Infomation AboutLaljiram Shukl

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
दूसरा प्रकरण मानसिक दन्द् मनुष्य को दो प्रकार की लड़ाई सदा लड़ते रहना पढ़ता हैं एक बाहरी और दूसरी भीतरी । इस लड़ाई के लड़ते रहने मै ही जीवन है। इसी से उसकी इच्छाशक्ति चरित्र अ्रथवा व्यक्तित्व का गढ़न होता है । जो व्यक्ति इन लड़ाइयो से भागता है वह अपने जीवन को भार रूप बना लेता है । बहादुर बनके जीना ही जीना है। भययुक्त होकर जीना मृत्यु ठुल्य है | उपयुक्त दो प्रकार वी लड़ाइयों का त्ापस का घनिष्ट सम्बन्ध है । बाहरी लड़ाई मै विजय मनुष्य को. कुछ दूर तक श्रान्तिरिक विजय प्राप्त करने का सामर्थ्य प्रदान करती है । युरुप के कुछ विद्वानों का मत है कि तआत्म-विजय का सर्वोत्तम उपाय श्रपने आपको शारीरिक चास देंने के कार्य मे न लजाकर किसी रचनात्मक काम में लगाना है। ऐसे काम को पूरे करने मैं मनुष्य को श्रनेक प्रकार का आत्म-सयम करना पड़ता है और इससे उसकी पाशविक प्रच्नत्तिया अपने-आप ही उसके काबू मै श्रा जाती है। इस प्रकार उन प्रद्नतियों की शक्ति का सदुपयोग अथवा उदात्तीकरण दो जाता है । मानसिक शक्ति प्रकाशन से समाप्त होती है श्रौर दमन से वह संचित हो जाती है । फिर वह विकृत रूप से रोग अथवा अपराध में नकलती है । हम श्रपनी बाहरी लड़ाई में कभी-कभी परमात्मा की सहायता की श्रपेक्षा करते हैं । परमात्मा वह तत्व है जो मनुष्य की बुद्धि की पहुंच के बाहर है । यह नई शक्ति हमे सफल बनने के लिये दे देता है। किसी प्रकार की झ्नायास सद्दायता परमात्मा की सहायता मानी जाती है ।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now