संत चरनदास | Sant Charandas
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
75.02 MB
कुल पष्ठ :
508
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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तंत्र-साहित्य में मक्ति के स्वरूप--वैदिक साहित्य के समान ही तंत्र साहित्य
प्राचीन है । इस साहित्य में शक्ति सिद्धान्तों का प्रतिपादन हुआ है । इसमें सवशक्तिमान्
को श्ाराघना पिता के रूप में नहीं वरन् माता के रूप में करने का उपदेश दिया
गया । सक्तिमाग में इन ग्रन्थों का प्रचुर प्रभाव पड़ा । देवीसूत्र को तो वैदिक साहित्य
तक में स्थान प्रात हुआ । शेव सम्प्रदाय के सिद्धान्तों की रचना तथा उद्मव इ
अन्धों के आधार पर हुआ्रा । वैष्णव सम्प्रदाय के पांचरात्र श्रागम इसी साहित्य
के श्रन्तगंत परिंगणित होते हूँ । तंत्र-साहित्य में भक्ति का बड़ा तीघ्र, उज्ज्वल तथा
महस्वपूण रूप व्यक्त हुमा है ! इस साहित्य में सक्त के चरित्र, साधना पद्धति तथा
श्राचार-विचार .का भी सबविस्तार उल्लेख मिलता है । तंत्र-साधना में भक्ति का
स्वरूप बड़ा स्पष्ट है ।
पांचरात्र--सात्वतों से लेकर गुप्त सम्नादों के उस्कर्षकाल में वैष्णव धर्म तथा
भागवत घम का श्रम्युदय हुभ्रा । गुर सम्ाटों ने वैष्णव घर्म को राष्ट्रघम के पद पर
प्रतिष्ठित किया । इसी समय पांचरात्र संहिता का. प्रणयन हुआ । ब्रह्म के सक्तों को
भागवत कहा गया झ्ोर इसी कारण यह घ्म भागवत घम के नाम से प्रख्यात हृत्रा !
[गवत घम ही पांचराक्-मत के नाम से प्रसिद्ध है । इसका सात्वत-मत नाम मी है 1
यह अंतिम नाम इसलिये प्रसिद्ध हुआ कि सात्वत नरेशों ने इस मत के प्रचार में
विशेष उद्योग किया था । पांचरात्र शब्द का निर्माण पांच तथा रात्र शब्दों से हुआ्आा
है। रात्र शब्द ज्ञान का पदा है। पांचरात्र साहित्य सें परमतत्व सुक्तियोग
तथा सत्संग की विवेचना की गई है । चारों वेद तथा योग के सिद्धान्तों का
निरूपण होने के कारण भी यह साहित्य पांचरात्र के नाम से प्रख्यात हुआ *--
इदं॑ सहोपनिषदं तेन पंचरात्रान्नुशाब्दितमू ।
नारायणसुखोद्गीतं नारदे श्रावयत् पुनः ॥
महा०, शांति पव॑, श्ध्याय ३ रे
प्रस्तुत तंत्र झतीव श्रवांचीन एवं बहुदेवोपासना का समर्थक है । पांचरात्र
साहित्य के झ्रनुसार पंच व्यापारों के माध्यम से भक्त भगवान को प्रसन्न करता है :--
( क ) झायंगमनकाय--काया; वाक् एवं मन अवहित करके देवग्रह
लिए प्रस्थान
(ख ,; उपादान--पूजा द्रव्य-श्र्जन था संग्रह
ग ) इज्या-पूजा
_(घ) स्वाध्याय--मन्त्रों का जप, दाशनिक ब्रन्थों का संग्रह, अवलो
([ड) योग--ध्यान
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