चौदहवी शती के अपभ्रंश और हिंदी साहित्य में भारत | Chaudahvi Shati Ke Apbhransh Aur Hindi Sahitya Main Bharat

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Chaudahvi Shati Ke Apbhransh Aur Hindi Sahitya Main Bharat by सूर्यनारायण पाण्डेय - Suryanarayan Pandey

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ४ ) सामान्यीकरण क॑ अनन्तर परिशिष्ट १ के सास्कृतिक शब्दानुक्रमणि 1 द्वारा स्पष्ट किया गया है कि उस समय कैसे-कैसे लोग थे । वस्त्राभुषण, खानदान, सवार, गुहुस्थोपयोगी सामग्री तथा मनोरजन बंया-वया थे । दत्कालीन सम्प्रदाय, देवी-देव८1, घमिक प्रवीक और उपकरण के नामोल्लेख है । भाधिक शब्द कोश में उपज, कृषि सम्ब घा-शब्द, गृहनिर्माण के लिए लडकी, वन-वृक्ष, उपबन के पेड-पीधे, पवत के चुक्ष, यज्न-बृक्ष, मरु, खनिज पदाथ, समद्र में प्राप्त रतन, व्यवसायी, पण्यबीथी, नाबातो बणिक के गुण तथा व्यापार की वस्तुएं दिख्ई गयी हैं । राजनीतिक शब्दकोश में ऐतिहासिक राज य, राज्य के अधिकारी, कर्मचारी तथा परम्परागत , ३६ आयुधो के नाम हैं। चतु षष्टिवला, कामवस्था, कान्य, भाषा-उपभाषा, व्याकरण, कोष अलकार ग्रन्थ, छन्द ग्रथ, अपूर्व ग्रन्थ, कद्दानी, लेखन सामग्री, वैद्यक, सर्वोपधि निरोगी, लघन-उपवास, निदान, मंत्र, चित्र, चौर, ज्योतिय, चत्य, वाद्य, विद्या, विद्यावत, सगीत, स्थापप्य और इस्त विद्या सम्बन्धी शब्दावली है । परिशिष्ट २ में समसामयिक तनाव एवं सघष सम्बन्धी विवरण है । प्रारम्भ से सम्माननीय निदशक तथा विशेषज्ञों की सम्मत्ति से शोध के आधार रूप में निम्नलिखित ग्रथ स्वीकृत हुए -- अपभध्र श-ग्रन्थ १ प्राकृत पेंगलम (१४वी शती का प्रथम चरण) सग्राहक 'पिंगल”* सम्पादक --- डा० भोलाशकर व्यास, प्रकाशक--प्राइत ग्रथ परिषद, वाराणसी प्र, स२०१६ | ( सकेत प्रावै० । ) र--वण रत्नाकर (१४वीं सदी का पुर्वाद्ध) ज्योतिरीश्वर कविशेखराचार्य मम्पादक-- सुनीतिकुमार चटर्जी तथा बबुआ मिश्र , प्रकाशक--रायल एशियप्टिक सोसाइटी भाव बगाल, १९६४० ई० । ( सफकेत-वर० । ) ३ ढोला मारू रा दूहा ( १४१ी सदी के लगभग ). रचयिता- अज्ञात, सम्पादक-+ रामधि्ट आदि, प्रकाशक--नागरी प्रचारिणी सभा, काशी, स० २०१९ । ( सफेत-वर० ) ४ कादिलता रचयिता--विद्यापति, सम्पा० वासुदेवशरण अग्रवाल ( सरंत-की० )) ५ कछूली रास ( स० १३६३ ) रचयिता-प्रज्ञाविलिक सूरी, रास और रासा बयी कान्य से, सम्पा० डा० दशरथ ओझा आदि, प्रकाशक--नागरीप्रचारिणी सभा” वाराणसी, स० २०१६ ( सकेत-कछली० ) १ देखिए प्रापे, भाग २, भूमिका २० । २ वही, प्र० २२।




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