नीति धर्म दर्शन | Neeti Dharm Darshan

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Book Image : नीति धर्म दर्शन  - Neeti Dharm Darshan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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न १७ - अपने राजनैतिक व्यवहार में किया। इस लर्थ में गांवी आत्मदल-सम्पन्न जघ्यात्म- वार थे न सदा 2. दार्यनिक न लेकिन अब रहा दार्यानिक गांवी । यांघी तत्त्वदर्जी के जर्य में तो दार्चनिक थे लाकनत तच्वचादा के लथ से नहीं । उन्दान लपन उकसा विधिप्ट सिद्धान्त का प्रतिपादन की तत्त्वन्नान न शिया नहीं किया। किसी तत्त्वनान के प्रदत्तेन का दावा नहीं किया ।' एक कवि ने कहा 22. पुराने 2 न नि क अपनी टिमसटिमाती ु मोमवत्तियाँ हब 2. 25 “र दिखाने द् कि पुराने सारे बम अपनी टिमटिमाती हु मामदात्तर अकड़ दवा लगे। उधर से तगड़ा सत्य लाया। एक न्ञकोर सें सारी मोसवत्तियां व गयीं । चर ५ #७ झ्स स्््स््द म्य्यन शा च्यवहार धन, इस मम को गांवा न पकड़ा था । इसलिए उनका घन व्यूबद्वारमय था; व्यवद्धार घर्ममय था और दोनों सत्यारभिमुख थे। यही गांवी का दर्दन है अर्थात उसकी जीवन-निप्ठा । मैं एक ऐने विभूतिमत्सत्त्व की मीमांसा करने के लिए उच्चन हुआ जो निरन्तर नवनवोन्मेप प्रकट करता रहा । मेरी अत्पदृष्टि में गांवी के जैन दर्घन हुए उनका निरुूपण मैँचे यवामति किया है। राइट टाउन, जवलपुर। --दादा घर्माधिकारी




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