काव्य मंदाकिनी | Kavya Mandakini
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7.86 MB
कुल पष्ठ :
274
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कबीर
एक म्यान में दो खड़ग देखा सुना न कान ॥
कबिरा प्याला प्रेम का झ्ेतर लिया लगाय ।
| रोम रोम में रमि रददा और अमल क्या खाय ॥
£'दरि से तू जनि देत कर कर दरिजन से दंत ।
* माल सुलुक हरि देत हैं हरिनन दरिहिं देत ॥
दुख में सुमिरन सब करे सुख में करे न कोय ।
जो सुख में सुमिरन करे तो दुख काढ़े को होय ॥
सुख में सुमिरन ना किया दुख में कीया याद ॥
कद्द कवीर ता दास की कौन सुने फिरियाद ॥
सुमिरन सों मन लाइए जेसे नाद करेंग ।
कहें कबीर बिसरे नहीं प्राच तजे तेडि संग ॥
माला फेरत जुग भया फिरा न मन का फेर ।
कर का मनका डारि दे मन का मनका फेर ॥
कबिरा माला मनहिं की श्र सेसारी भेख ।
माला फेरे हरि मिलें गले रेट के देख ॥
माला तो कर में फिरे जीभ फिरें सुख साहिं ।
मजुवां तो दृहँ दिसि फिरे यह तो छुमिरन नाहिं ॥
पृूसाधू गाढ़ि न बेघई उद्र समाता लेय।
श्रागे पाछे हरि खड़े जब मांगे तब देय ॥
साईं इतना दीजिए जा में कुट्ेंब समाय।
मैं भी भूखा ना रहूं साघु न भूखा जाय ॥
क्या मुख ले बिनती करों लाज श्रावत है मोर्दि ।
चुम देखत श्रौगुन करों केसे. सावों तोदिं ॥
मैं झपराधी जन्म का नख-सिख भरा विकार ।
तम दाता “खर्भज़ना मेरी करो. रूम हो
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