मेरा बेटा मेरा दुश्मन | Mera Beta Mera Dushman

Mera Beta Mera Dushman by ख्वाजा अहमद अब्बास - Khwaja Ahamad Abbas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कहानी की कहानी गेस्ट-हाउस न० ४ पहुँच गया, जहाँ दूसरे प्रगतिशील लेखकों के ग्रर्तिश्क्त राजेन्द्र सिंह बेदी, नवतेज सिंह श्लोर चार सिक्ख फौजी दफसर भी उस शाम की मोष्ठी में शरीक थे । मैने सोचा, अच्छा है, कहानी के वारे में इन सब सिक्स दोस्तों की राय मालूम हो जायगी । जब मैंने कहानी ठुनाना शुरू को, तव पहली कुछ पक्तियो को सुनकर महफिल मे कई ठहाके लगे दौर में घबराया कि कहीं व्यग्य के श्सल उद्देश्य को गरर- त्न्दाज करके सव लोग इन चुटकुलो पर ही हँसते न रहे । लेकिन णीघ्र ही यह हँसी गम्मीरता में चबदल गयी | प्रतिभाशाली चेहरों पर सोच श्र चिन्ता की लकीरें पड गयीं और उसके वाद मैं ( यानी सेक्रेटेर्यिट के मुस्लिमज्ीगी क्लर्क शेख बुरहानुद्दीन ) के जहरीले जुमलो पर कोई न हेंसा । जब कहानी खतम हुई तो कई मिनट तक खामोशी छाती रही | श्रभी साहित्यकार कहानी के साहित्यिक माप-दुड को मन-ही-मत जॉच रहे थे कि सिक्ख फौजी अफसरों में से एक ने अपना परिचय कराते हुए कहानी की प्रशसा का श्र फरमाटश की कि जिस पत्रिका में वह छुपे, उसकी एक प्रति मैं उन्द शरूर भेजें | जहाँ तक मुभ्दे वाद है, जितने साथी वहाँ मौजूद थे, सब ने कहानी को पसन्द किया श्र कुछ ने कहा कि 'सरदार नी लिखकर मैंने साम्प्रदायिक विद्वेप पर गहरी चोट लगायी रै । चारों सिंक्ख दोस्तो ने विशेष रूप से मेरी कोशिश को सराहा, लेकिन राजेन्द्र सिंह बेदी ने टोस्ताना सलाह टा कि कहानी के “मैं? झर्थात्‌ बुरहानुरीन की ज्षवानी सुनाये हुए. कुछ रन्दे चुट्कूलो को (जो सचमुच काफी गन्दे थे क्योंकि वे गन्दे श्रौर नीच दिमाग का प्रतिनिधित्व करते थे ) निकाल दिया जाय जिममें कि कसी पटने वाले को भी यह भ्रम न हो सके कि कहानी- कार उन व्यान करके द्ानन्द लेना चाहता है । (यह सलाह उचित [ ११ |




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