मआसिरूल उमरा भाग - २ | Maasirool Umra Bhag 2
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15.26 MB
कुल पष्ठ :
611
श्रेणी :
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ब्रजरत्न दास - Brajratna Das
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मुंशी देवीप्रसाद - Munshi Deviprasad
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( दे. )
व्ढ़ाई कर उनको मार डाठने तथा उनके निवासस्थान को नष्ट
करने में कुछ उठा न रखा । १३वें वष सें यह दरबार बुला
छिया गया और दक्षिण की चढ़ाई पर भेजा गया; जहाँ शिवा
जी भोंसला गड़बड़ किए हुए था । यहाँ भी इसने वीरता दिख-
लाई और मराठों पर बरावर चढ़ाई कर उन्हें परास्त किया । आज्ञा
आने पर यह द्वार लौट गया और १७ वें चषे फिर काचुछ
भेजा गया । इस बार भी इसने वहाँ साहस दिखलाया । १८ वें वर्ष
में यह जगदढक का थानेदार नियत हुआ और २४वें वर्फे में
झफग़ानिस्तान की सड़कों का निरीक्षक हुआ तथा डंका पाया ।
राजधानी में कई वर्षों तक यह किसी राजकायं पर नियत रहा !
३५ वें चपें में बादशाह. ने इसे दुक्षिण चुलाया छौर जब यह सागे में
दआगरे पहुँचा तव जाटों ने, जो उस समय उपद्रव मचा कर डॉके
डाल रहे. थे, एक कारवाँ पर आक्रमण कर कुछ गाड़ियों को,
जो पोछे रह गई थीं; लूट लिया और कुछ आदमियों को
क्रेद कर लिया । जब अग़ज़ ने यह वृत्तांत सुना तब एक दुर्ग
पर चढ़ाई कर उसने कैदियों को छुड़ाया पर दूसरे दुर्ग पर
दुस्साइस से चढ़ाई करने में गोली लगने से सन् ११०२ हि०,
सच १६९१९ ई० में मारा गया । अग़ज़ खाँ द्वितीय इसका पुत्र
था । इसने क्रमशः पित्ता की पद्वी पाई गौर यह मुदस्मद शाह
के समय तक जीवित था । यह भी प्रसिद्ध हुआ और समय
आाने पर सरा ।
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