पाश्चात्य साहित्य - शास्त्र | Pashchatya Sahitya - Shastra
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11.09 MB
कुल पष्ठ :
300
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)गास्त्रीयवाद १9
पड़ेगा ।”होरेस के स्वर में स्वर मिलाकर कहते हैं:--
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ग्रियर्सन के भ्रनुसार दास्चीय-साहित्य एक युग-विश्ेष की रचना
होती है जिसकी कुछ स्पष्ट मनोवृत्तियां श्रौर रुचि-विशेष होती है,
जिसके श्राश्रय शास्त्रीय-साहित्य फलता-फुलता है । श्रनेक बार यह
आरोप लगाया जाता है कि शास्त्रीय साहित्य अभिव्यक्ति-पक्ष को ही
श्रघिक महत्त्व देता है, अनुभूतिपक्ष को नहीं । प्रियसन का. स्पष्टीकरण
इस प्रकार है:--“'जहां तक हम अनुभव करते हैं, शास्त्रीय ' साहित्य और
कला की यह अ्रनिवायं विशेषता है कि उसमें सामग्री और रूप में एक
संतुलन रहता है, दोनों में ही एक उच्च स्तर की योग्यता या पुर्णता
स्थापित की जाती है ।” ग्ियसंत की यह दलील नव श्ञास्त्रवादी साहित्य
पर पूर्णरूपेण लायू नहीं होती । वहां रूप-पक्ष ( िणणण ) पर अधिक
ध्यान दिया जाता है- यह बात हम झ्रागे स्पष्ट करेंगे ।
ग्रियसंन का कथन है कि शास्त्रीय साहित्य में तके श्रौर
भावना का संतुलन होता है आर स्वच्छंदतावादी साहित्य में तक का
विरोध होता है-- मात्र आकार के प्रति श्रास्था रखने से कविता शास्त्रीय-
वादी नहीं बनती । उन के श्रनुसार शास्त्रीय-युग, चुद्धि व बविवेक
( 5०000 86056 ) का युग होता है । इसमें सामाजिक-चेतना द्वारा व्यक्ति
का नियंत्रण किया जाता है-- उसके प्रत्येक गुणों का संतुलन किया
जाता है । जंसा कि ब्रनेटियर कहते हैं कि एक शास्त्रीयवादी व्यक्ति
तभी शास्त्रीय वनता है जब कि उसकी रचनाओं में सभी संकाय अपना
अपना कार्य करते हैं--कल्पना, बुद्धि, तकें,. वर्ण्य-विषय, रूप-विधान
सभी भ्रपने निद्चित आयामों में काम करते हैं 17
प्रियसंन लिखते हैं-- “उपलब्धि ही मेरे मतानुसार, जीवित,
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