संत कवि रज्जब ग्रंथांक - ७६ | Sant Kavi Rajjab Granthank-76

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Sant Kavi Rajjab Granthank-76 by डॉ. ब्रजलाल वर्मा - Dr. Brajlal Varmaमुनि जिनविजयजी - Muni Jin Vijay Ji

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डॉ. ब्रजलाल वर्मा - Dr. Brajlal Varma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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रा उपोदुघात [ सवत्‌ १४७५ में ज्ञान सागर प्रेस मादुगा, बम्बई से हुआ था, किन्तु नितान्त ्रणुद्ध मुद्रित होने के कारण वह न होने के समान ही रहा । राजस्थान झौर पंजाब के दाद-पंथियों के बोच यद्यपि रज्जब-साहित्य का पठन-पाठन चलता रहता था, किन्तु हम उसे हिन्दी साहित्य के श्रध्ययन की विकसित परम्परा के अन्तगंत नहीं रख सकते । उस पठन-पाठन की पृष्ठ-भूमि मे दाढू सम्प्रदाय की घार्मिक झास्था ही मूल प्रेरक थी । पुरोहित हरिनारायण शर्मा के “महात्मा रज्जब' शीर्षक लेख तथा पण्डित परदशुरामजी चतुर्वेदी की पुस्तक “उत्तरी भारत की सत परम्परा! से इतर रज्जबजी पर कोई श्रालोचनात्मक सामग्री उपलब्ध नहीं होती श्रौर सम्भवत लिखी भी नहीं गई । श्रपेक्षित सामग्री के अभाव मे मेरा यह कार्य श्रपनी छोघ-सीमाश्रो से भले ही पीडित हो, किंतु इससे एक नवीन निगुण घारा के समृद्ध सत कवि का धूमिल रेखा-चित्र तो प्रस्तुत्त हो ही जायगा, जिसमे अ्रन्य सुघी-साघक सुविधा से श्रपनी इच्छानुसार रग-योजना कर सकते हैं । मेरा यह प्रयास रज्जब-साहित्य की समालोचना का 'अ्रथ' है 'इति” नही--प्रयत्न है, सिद्धि नही । प्रथम श्रष्याय मे रज्जवजी की जीवन-सामग्री पर विचार किया गया है । मु्ते यह स्वीकार करने मे सकोच नही है कि रज्जबजी के जीवन पर कुछ श्रधिक स्पष्ट निर्धान्त सुचनाये प्रस्तुत की जानी चाहिए थी, पर यह मेरा श्रौर विषय का दुर्भाग्य है कि मेरे द्वारा यटिकिव्न्वित उपस्थित किये गये तथ्यों से झागे न तो श्रन्त.साकष्य के आधार पर श्रौर न बाह्य साक्ष्य के श्राघार पर कोई सामग्री प्राप्त होती है । महात्मा नारायणदासजी के परामर्शों का मैंने इतस्तत उपयोग किया है । दादू-पथ मे इन महात्मा के भ्रतिरिक्त श्रन्य कोई ऐसा महा- र्मा नही है जो रज्जब साहित्य मे विशेष रुचि श्रथवा जानकारी रखता हो। मैंने रज्जबजी के जीवन के कतिपय पटलो पर प्रकाश डालने के लिए पुरोहित हरिनारायण दार्मा के विचारों का श्राश्रय लिया है। उन्ही के द्वारा सम्पादित सुन्दर ग्रथावली' से भी कुछ सहायता प्राप्त हुई है । रज्जबजी का जीवन-वत्त भ्रतीत के ऐसे गहन तिमिर मे विलृप्त हो गया है कि उसका श्रधिक परिचय पाना कठिन ही नहीं, अझसम्भव प्रतीत होता है । चतुर्वेदीजी की “उत्तारी भारत की सतपरम्परा' भी इस दिशा मे उपयोगी सिद्ध हुई, किन्तु इन बहुविघ सुच- नाझओ के समस्त उत्सो का सुन उद्गम एक ही प्रतीत होता है । उनकी जीवन सामग्री खोजने का प्रयत्न मेने उनके दो तीन थाम्मो (गद्दियो) से किया । जैसे--- निवाई, भादवा तया सागानेर) किन्तु इन स्थानों में कोई ऐसे साधु नही रहे, जिनसे कुछ श्रघिक जानकारी प्राप्त होती । अत, समस्त सम्भव साधनों का सदु-




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