पलटू साहिब की बानी भाग ३ | Paltu Sahib Ki Bani Bhag Iii
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3.73 MB
कुल पष्ठ :
106
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)शब्द रे
न .
लादि चला बंजारा है, कोउ संग न साथी ॥ टेक ॥
जाति कुटुम सब रुदन' करत हैं, फेरि बैठि मुख दारा* है 0१1!
छुटिगे बरदी खुटिगे टॉडा, निकरि गया वह प्यारा है ॥२॥
बेठे काग सून था मंदिल, कोई नहीं रखवारा है ॥३॥
पलट्दात तजो सरगतूसूना, कूठा सकल प्तारा है ॥४॥
र्प
भजि लीजे हरि नाम, काम सकल तजि दीजे ॥ टेक ॥
मातु पिता सुत नारि बाँधवा, आावे ना कोउ कामा ।
हाथी घोड़ा सुलुक खजाना, छुटि जेहें घन धामा ॥ १ ॥
जब तुम थाया यूठी बाँधे, हाथ. पसारे जाना ।
सुखा हाथ जगत की माया, ताहि देखि ललचाना ॥ २ ॥
नर तन सुमभग भजन के लायक, कौड़ी हाट बिकाना ।
हरिगा ज्ञान परा कतंगति, अस्त में दिप साना ॥ ३ ॥!
एक न भला दुई ना थूला, भूल सब. संसारा ।
पलटुटास दम कहा पुकारी, झब ना दोस हमारा ॥ ४ ॥
बृद्ध भये तन खासा, अब कब भजन करहु गे ॥ टेक ॥
नालापन बालक सँग बीता, तरुन भये झमिमाना ।
नस सिख सेती मई सपेदी, हरि का मरम न जाना ॥ १ ॥
तिरिमिरि बहिर नासिका चूदे, साक* गरे चढ़ि झाई ।
सुत्त दारा गरियादन लागे, यह बुढुवा मरि जाई ॥ २ ॥
पीरथ बत एको नहिं कीन्हां, नहीं साध की सेवा ।
पीनिउ पन धोखे में बीते, ऐसे मुरुख देवा ॥ ३॥।
करा भ्राइ काल ने चोटी, सिर धुनि धुनि पद्चिताता ।
तटदास कोऊ नहिं संगी, जम के हाथ बिकाता ॥ ४ ॥
(१) बिज्ञाप । (९ स्री । (३) दमा |
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