चरण दास जी की बनी भाग - १ | Charan Das Ji Ki Bani Bhag I

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सत्तगुरु महिमा मेरा यह उपदेस हिये में धारिया । गुरु चरनन मन राखि सेव तन गारियो' ॥ जो गुरु सिड़के' लाख तो मुख नईिं मोड़ियो । गुरु से नेह लगाय सबन सों तोड़ियो ॥ जो सिष सांचा दोय तो झआापा दीजियो । चरनदास की सीख समक कर लीजियो ॥ मो को श्री सुकदेव यहीं समसकाइया । बेद पुरानन माहिं जो यों हीं .गाइया ॥४४.॥। ॥ जगतयुरु, सतगुरु चर शिष्य निणुय ॥ ॥ कनफूंका गुरु ॥ ॥ दोहा ॥। कनफेका गुरु जगत का. राम मिलावन थर । सो सतगुरु को जानिये मुक्कि दिखावन ठौर ॥४९॥। गलियारे* गुरु फिरत हैं घर घर कंठी देत। झौर काज उन नहीं द्रव्य कमावन हेत ॥४७॥ गुरु मिलते ऐसे कहें कछू लाय मोहिं देहु। सतझुरु मिल ऐसे कहें नाम धनी का लेहू ॥४८॥ | सतगुरु पी ॥ दोहा ॥। सतगुरु डँंका देत हैं भक्ति धनी की लेहु। पहिले हम छू मेंदटी सीस आपनो देह ॥४६॥ ऐसा सतगुरु कीजिये जीवत डारे मारि। जन्म जन्म की बासना ताक देवे. जारि ॥५०॥ भरम निवारन भय हरन दूर. करन संदेह । सोता खोलै प्रेम का. सो सर्म गुरु करि लेहि ॥५१॥ सतगुरु के लच्छन कहे ताक ले. पहिचान। निरखि परखि करि दीजिये तन मन घन झरु प्रान ॥५२॥। 19१ यहा देखा । (२१ गली गली 1




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