पलटू साहिब की बानी भाग - १ | Paltu Sahib Ki Bani Bhag I

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Paltu Sahib Ki Bani Bhag I by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कुंडलिया राई पखत करें करें. परबत को राह । अदना के सिर छात्र पेज की करें बड़ाइ ॥ लीला अगम अपार सकल घट झूंतरजामी । खाँहिं खिलावहिं राम देहिं हम को बदनामी ॥ हम सेाँ भया न होयगा साहिब करता मोर । देत लेत है आपुद्दी पलट पलट सोर ॥! ॥ संत छौर साथ ॥। ( रर बढ़ा होय तेहि पूजिये संतन किया बिचार ॥ संतन किया घिचार ज्ञान का दीपक सीनन्‍्हा ॥ देवता तेंतिस कोट नजर में सब को चीन्हा ॥ सब का खंडन किया खोजि के तीनि निकारा । तीनों में दुइ सही मुक्ति का एके द्वारा । हरि को लिया निकारि बहुर तिन मंत्र बिचारा । हरि हैं गुन के बीच संत हैं गुन से न्यारा । पलट प्रथमे संत जन दूजे है. करतार। बड़ा द्दोय तेहि पूजिये_ संतन किया. बिचार ॥ सीतल चन्दन चन्द्रमा त्तैसे सीतल. संत ॥ तेसे सीतल संत जगत की ताप बुकावे । जो कोइ आवे जरत मधुर मुख बचन सुनावे ॥ धीरज सील सुभाव छिमा ना जात बखानी । कोमल अति स्दु बैन बच को करते पानी ॥ रदन चलन मुसकान ज्ञान को सुगंध लगाव । तीन ताप मिट जाय संत के दर्सन पावे ॥ पलटू ज्वाला उदर' की रहे न. मिटे तुरंत । सीतल चन्दन चन्द्रमा संसे सीतल. संत ॥




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