पदार्थ विज्ञानं भाग - २ | Pdarth Vigyan Bhag - 2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ३ ) है; श्रीर झशाश्वत अंगके कारण प्रत्येक चस्तु उत्पाद-व्ययात्मक : र्थात्‌ उत्पत्ति ्ौर विनाशशील-शनित्य है। “उत्पाद व्यय :श्रीव्य युक्त सतत ”झथात्‌ पदार्थ उत्पन्न होने वाला, नाश दोने चाला तथा स्थिर रदने वाला भी होता है । इस प्रकार निप्याभित्य :होता है । उसकी दृष्टिमें “अपनी जातिसे च्युत न होना” :'नित्यत्वका लक्षण है । वस्तुमें परिणाम द्ोने पर भी जातिगत _४कंता विघटित नहीं होती, घ्तएव नित्य है । जैन धर्मकी दप्टि , में जगतका नानात्व भी यदाथ है ौर एकत्व भी सत्य ह। जैन धर्म जीचनके साथ कर्मका सम्वन्ध तथा ,विच्छेद दिखलाने के लिये सात पदार्थोका वर्णन करता है; किन्तु वे सात पदाथ हमारे श्रन्थ कथित पदार्थोसे मिन्नःहूं । जैन धर्मके सात्त पदाध (१) छाश्रव (२) बन्ध (३) संवर (४) निजरा (९) मोक्ष (६) जीच श्रौर (७) अजीव हैं । किन्तु ये भौतिक' पदार्थ विज्ञानके विपय नहीं श्रघ्यात्सके पराथ हैं । इसलिये हमने जिन घ्ायु- चे'दामिमत्त पदारधोका वर्णन किया हैं चही इंस भन्धके लिये भीष्ट हैं । पुस्तकको लिखे एक सालसे अधिक हो गया; किन्तु 'नेर ध्पड्चनोंसे यह झव तक प्रकाशित न हो सकी । इस चीचमें “वेद्यनाथ प्रकाशन” की श्रोरसे श्ञायुवे दाचाय पण्डित रामरनत पाठक प्रिसपल योध्या शिव कुसारी प्ायुवे द कालेज वेगू- सरायकी लिखी “पदाधे विज्ञान” नामकी एक पुस्तक प्रकाशित




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