पदार्थ विज्ञानं भाग - २ | Pdarth Vigyan Bhag - 2
श्रेणी : विज्ञान / Science
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
2.95 MB
कुल पष्ठ :
92
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ३ )
है; श्रीर झशाश्वत अंगके कारण प्रत्येक चस्तु उत्पाद-व्ययात्मक
: र्थात् उत्पत्ति ्ौर विनाशशील-शनित्य है। “उत्पाद व्यय
:श्रीव्य युक्त सतत ”झथात् पदार्थ उत्पन्न होने वाला, नाश दोने
चाला तथा स्थिर रदने वाला भी होता है । इस प्रकार निप्याभित्य
:होता है । उसकी दृष्टिमें “अपनी जातिसे च्युत न होना”
:'नित्यत्वका लक्षण है । वस्तुमें परिणाम द्ोने पर भी जातिगत
_४कंता विघटित नहीं होती, घ्तएव नित्य है । जैन धर्मकी दप्टि
, में जगतका नानात्व भी यदाथ है ौर एकत्व भी सत्य ह।
जैन धर्म जीचनके साथ कर्मका सम्वन्ध तथा ,विच्छेद दिखलाने
के लिये सात पदार्थोका वर्णन करता है; किन्तु वे सात पदाथ
हमारे श्रन्थ कथित पदार्थोसे मिन्नःहूं । जैन धर्मके सात्त पदाध
(१) छाश्रव (२) बन्ध (३) संवर (४) निजरा (९) मोक्ष (६)
जीच श्रौर (७) अजीव हैं । किन्तु ये भौतिक' पदार्थ विज्ञानके
विपय नहीं श्रघ्यात्सके पराथ हैं । इसलिये हमने जिन घ्ायु-
चे'दामिमत्त पदारधोका वर्णन किया हैं चही इंस भन्धके लिये
भीष्ट हैं ।
पुस्तकको लिखे एक सालसे अधिक हो गया; किन्तु 'नेर
ध्पड्चनोंसे यह झव तक प्रकाशित न हो सकी । इस चीचमें
“वेद्यनाथ प्रकाशन” की श्रोरसे श्ञायुवे दाचाय पण्डित रामरनत
पाठक प्रिसपल योध्या शिव कुसारी प्ायुवे द कालेज वेगू-
सरायकी लिखी “पदाधे विज्ञान” नामकी एक पुस्तक प्रकाशित
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