राजस्थानी शब्द कोष भाग 2 | Rajasthani Sabad Kos Part 2

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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थंभियों १६०१ अप एएाट हुमा. ३ घीरज घरा हुमा. ४ टिका हुआ, रुका हुआ, थमा हुआ. ४ रोका हुआ, ठहराया हुआ । | ः (स्त्री० थंभियोड़ी ) थंभियी--देखो “थंभीं” (श्रल्पा., रू.भे.) थंभी--देखो “थेबी' (श्रल्पा , रू.से.) थंभीड--देखो 'थंबी (मह., रू-भे.) थंभो--देखो 'थंबी' (रू-गे.) थ-सं०्स्त्री०--१ सरस्वती. २ छाक। सं०्पु०--३ गणेश: ४ गरुड. ५ ऊपर का होठ (एकाः) सर्व०--देखो 'त' (२) (रू.भे.) थडं, थइ-“देखो 'थई' (रू.भे, थइग्ायत-सं०पु०--वह नौकर जो पान के बीड़े साथ लिये हुए श्रपने मालिक के संग रहे। उ०--श्रनेक गणनायक दंडनायक राजेस्वर तलवर माइंबीक कौठंविक मंत्रि महामंत्रि गरसक दौवारिक श्रमात्य चेटक पीठमरदक स्रीगरणा वयगरणा ख्रस्ठि सारथवाहू दूत सिंघि- पाठ प्रततिहार पुरोहित थट्दश्न[यत सेनांनी 1--व.स रू०्मे०--थईग्राइतु, थईश्रायतु, थईयात, थईयायत, थईयार, थेईयात ! (मि० थईघर) घइणी, थद्दबोौं--देखो 'थावणी, धावबी” (रू.मे.) उ०--ुह$ ग्यांनी ध्यांनी सब सुखा लीजी, वांठां चेतन रइया । सत लोक सोहं घरवासा, थिर थांता थइया ।--स्री हरिरांमजी महाराज उ०--२ दूरि दढ देख जसवंत थइयो दई। कोड़ लग पाखरथा कटक श्रायौ कई 1--हा.सा. थइलो--देखो 'थैली' (रू.भे.) | थई-सं०स्त्री० [सं० स्था] १ ढेर, रादि... २ देखो “थेई' (रू.मे.) [सं० स्थगी] दे एक प्रकार की चमड़े की थैली. ४ पान रखने की डिबिया। थ यईश्राइतु, पईग्रायतु--देखो 'थइग्रायत' (रू भे.) उ०--पाछइ थईश्राइतु, डावइ मंत्रीस्वर, जिमणइं पुरोद्धित, विहु पार्स झ्ंगोछणु तसणी हारि इसउ श्रास्थोनमंडप 1--व.स. थईतथई--देखो 'थेईत्थेई” (रू.भे.) थईघर-सं०पु० [सं० स्थगीधर_] राजा का ताम्बूल-वाहक | उ०--छवघर नइ चमरघर वेह, थईघर नई कुब्नक जेह । छट्टूउ सिहां दघिपरण राय, रथिईं बइठा रूडइ ठाइ ।--नठत्-दवदंती रास थईयात, थईयायत, थईयार--देखों “थददय्रायत” (रू.भे.) उ०--राय कहै कोई काज ल्यौ, राखी माहरी मांन | थईयाधत कांमी लियी, राय श्रपावे पांच 1--ख्रीपा रास थक--देखो 'थोक (१) (रू.भे.] उ०--श्रनंत कोट ब्रह्म ड तणा इंद्र तन खोहण रत लोक ता । सात पायाठ तणा इंद्र साखइ, घर सूं थक मेलिया घरणा 1--महादेव पारवती री वेल थकई-ग्रव्य०--से |. उ०-उकरहंउ कुड़इ मनि थक, पग राखीयउ जांगा । ऊकरड़ी डोका चुगद, श्रपस डंभायठ झांख 1--ढो.मा. थकणी, थकबौ--देखो 'थाकणी, थाकवी' (रू.मे.] उ०--निज घर परा पार निरवांना, थकत वखरी गांना।--ख्री सुखरांमजी महाराज थक्षणहार, हारी (हारी), थकणियोँ--वि० । थकवाइ़णी, थकवाइवी, थ कवाणी, थकवावी, थकवावणी, थकवा- बबौ--प्रे०रू० | थकाइणी, थकाइवी, थकाणों, थकाबी, थक्तावणी, थकाववी--- क्रि०्स० || थकिश्नोड़ी, थकियोड़ी, थक्योड़ी --भु०्का०कु० । थकीजणी, थकीजबी--भाव वा ० । थकां-क्रि०वि० [सं० प्ठान्नस्थित-स्थितेसति श्रथवा ष्टकू प्रतिघातिन्> स्थविकतः] १ होते हुए, रहते हुए । उ०--१ राव मालदे बुरी कीवी जु राठौड़ डूंगरसी कन्है जतारण उरी लीघी, जसवंत सरीखा बेटा थक्ां । तर जसवंतजी कद्मो--उण मां रावजी रौ. दोस कोई नहीं 1--राव मालदे री वात उ०-९ चुगद चितारइ भी चुगद, चुगि शुगि चित्तारेह । कुरभकी _ बच्चा मेल्हिकड, दूरी थकां पाठ ह ।--ढो.मा ०--३ साई एहा भीचड़ा, मोलि महूंगे वासि । ज्यों श्राछुन्लां दूर भी, दूरि थकां भी पासि ।--हों- भा २ हुए। उ०--१£ जिर्क घोड़ा सोने री सागत रा, रूप री साजां में मंडिया छँ । श्रांवछा पेच नांखियां थकां व।वछा श्रसवार चढ़िया ले । -पनां वीरभदे रो वात उ०-९२ तर जसवंत जी नूं रावछ सूची कह्मौ हाथी रांणजी मंगाया हुं रांसा रो चाकर, ,हाथी उरा दे । त्तर जसबंतजी कह्यौ--हूं कोई तेडण गयी थो ? बेठां थकां श्राया बयूंकर देखी श्रावे। हिंमे जिके लेसी तिके मोनूं मार ने लेसी ।--राव मालदे री वात दे होकर । उ०--निवल्ठा पड़िया तर धोधां री ठकुराई मांहै मुकाती थकां रहता ।--नणसी ४ ही । उ०--उठा सूं प्यादल थकां कांघ गंगाजछ री कावड़ लीवी, पगां में खड़ाऊ हाथ में श्रासौ, सरब परिगह सहित रंगनाथजी रे मंदिर पधारिया ।--वबां.दा-ख्यात श्रब्य०--से; पर । उ०--१ जठे पनां बोली--श्र ती पांन की बीडी छे, रखावस्यी ही मन का मनोरथ हुवां थर्का चघाई पावसो हीज । “पनां वीरमदे रो वात उ०्नर भाव सद्य राख्यां थकां । भव भव में दुख पायों रे । उ०--३े भड़ाों वीरां री ने कायरां री परीक्षा तो जुघ में चंवाछ नगारा चहुब्रहोयां वाजियां थकां पड़े ।-- वो स.टी. रू०्मे०--थकांई, थका, थिकां, थिका | हर थर्काई-क्रि०वि० [सिं० स्थित -रा०प्र०ई या स्थविकतः--रा०प्र०ई] से हो। उ०--हूर यर्काई देखतां, जद मैं लीना जांग़ । घर सुरधर रा घाडवी, ग्रापड़ि उसरांरा ।--पा.प्र थकांण, थकांल--देखो 'थकावट' (रू.भे.) थका--देखो “थकां” (रू.में.] उ०--१ उठा जोधपुर हुता राव कल्यांणा-




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