जगजीवन साहब की बानी | Jagjivan Sahab Ki Bani

Jagjivan Sahab Ki Bani  by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बिनती '्यौर प्राथना । ऊँचे चढ़त थ्यानि के रोकत, मानहिं . नहीं दोहाई ॥ ४ ॥ अरब करु दाया जानि आपना, बिनय के कहां सुनाई । जगजीवन के इतनी बिनती, तुम सब लेहू बनाई ॥ ४ ॥ ॥ शब्द २५ ॥ साई' में तो बड़ा अनारी। कुमति प्रसंग बास नकंहिं मा, आवत नाहिं.. बिचारी ॥ १॥ परथों अपरबल महा मोह मरहेँ, सुधि वह नाहि सैँभारी । गुन नादही औशुन सब बहु विधि, बिसरी सुरति हमारी ॥ २ ॥ केतो करि उपाय में थाक्यों, में मन मान्यों हारी। अब दाया करि चरन.. लाई के निकट ते कबहूं न टारी ॥ ३ ॥ देहु सिखाइ पढ़ाइ ज्ञान मोहिं, करू योग अधिकारी । जगजीवन को चरन तुम्हारे सूति रहों निहारी॥ ४॥ ॥ शब्द २६ ॥ साई' कुदरति अजब तुम्हारो । तुम इडड अजब अजब हैं बन्द, में तम्दरी बलिद्दारी॥ १॥




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