जगजीवन साहब की बानी | Jagjivan Sahab Ki Bani
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.05 MB
कुल पष्ठ :
110
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बिनती '्यौर प्राथना ।
ऊँचे चढ़त थ्यानि के रोकत,
मानहिं . नहीं दोहाई ॥ ४ ॥
अरब करु दाया जानि आपना,
बिनय के कहां सुनाई ।
जगजीवन के इतनी बिनती,
तुम सब लेहू बनाई ॥ ४ ॥
॥ शब्द २५ ॥
साई' में तो बड़ा अनारी।
कुमति प्रसंग बास नकंहिं मा,
आवत नाहिं.. बिचारी ॥ १॥
परथों अपरबल महा मोह मरहेँ,
सुधि वह नाहि सैँभारी ।
गुन नादही औशुन सब बहु विधि,
बिसरी सुरति हमारी ॥ २ ॥
केतो करि उपाय में थाक्यों,
में मन मान्यों हारी।
अब दाया करि चरन.. लाई के
निकट ते कबहूं न टारी ॥ ३ ॥
देहु सिखाइ पढ़ाइ ज्ञान मोहिं,
करू योग अधिकारी ।
जगजीवन को चरन तुम्हारे
सूति रहों निहारी॥ ४॥
॥ शब्द २६ ॥
साई' कुदरति अजब तुम्हारो ।
तुम इडड अजब अजब हैं बन्द,
में तम्दरी बलिद्दारी॥ १॥
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