ब्रज माधुरी सार | Braj Madhuri Sar
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
15.96 MB
कुल पष्ठ :
376
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)श्रीव्रदास रह
पद बन सकते हैं, इसमें सम्देद्द नहीं । कवि-सम्राट सूर के सश्दन्ध में
कई भावुक रसिक्जनों ने श्रपनी-श्पनी सम्सतियाँ प्रकट की हैं । कतिपब
सज्ोक-प्रचजित सम्मतियाँ ये हू
तत्व-तत्व सूरा कदी, तुलसी कद्दी अनूदठि |
चची -खुची कविरा की, श्र की सब भूठि 1]
उत्तम पद कवि गंग को, कथिता को बलवीर |
चेश् अथ रॉमीर को, सर तीन शुन धघीर ||
किधों सर को सर लग्यो, क्रिघों सूर की पीर |
किघों सूर को पद लग्यों तन मन घुनत सरीर |
सूरदास थिन पद रचना अत कौन कव्रिदि करि आये है
सूर-कवित सुनि कौन कवि जो स्टि सिर चालन करे !
खोज में सूएदास के निम्नलिखित अंथों का पत्ता चला है 5
१. सूर-साराचली; २८ सुर ागर (श्रपूर्ण); दे. साइित्य-खदरी (दृष्टि
सूटकेन्पदाच जी), ४० ब्याइलो; ० नजदमयंती; ६ हृरिवंरा टीका 1
इनमें से धंतिम तीन संथ श्रप्राप्य हैं श्रोर संदिग्ध भी हैं ।
संभव है ये पुस्तकें किसी श्रन्य सूगदास की लिखी दो । “सिर-
सारावली” शरीर 'साइिस्य-लहदरी,” 'सुरसारा(' से संकलित की गई हैं ।
सुत्तरामू , सूर-सागर ही सूरदाप का एकमात्र चूददू ग्रन्थ है । इस
अऋसाघ सागर में घ्रनेक ब्मूदय दिध्य रख भरे पढ़े हैं । नीचे कुछ पद
उद्धृत किये जांते हैं :
बविलाचत
चरनकमल चन्दीं हरि राई |
जाफी कृग पंगु शिरि लंघे, श्रंपे को सब्र कट दरसारे ॥
वद्िरों सुने, पूक पुनि बोलें, रंरू चले सिर छुतह घराई |
'सूगदास” स्वामी वायणामय, वारवार बन्दों तिदि पाई 1 १॥
शराजा । ररगड़ा । कर जदय 1
चर
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