ब्रज माधुरी सार | Braj Madhuri Sar

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Braj Madhuri Sar by डॉ रामकुमार वर्मा - Dr. Ramkumar Varma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रीव्रदास रह पद बन सकते हैं, इसमें सम्देद्द नहीं । कवि-सम्राट सूर के सश्दन्ध में कई भावुक रसिक्जनों ने श्रपनी-श्पनी सम्सतियाँ प्रकट की हैं । कतिपब सज्ोक-प्रचजित सम्मतियाँ ये हू तत्व-तत्व सूरा कदी, तुलसी कद्दी अनूदठि | चची -खुची कविरा की, श्र की सब भूठि 1] उत्तम पद कवि गंग को, कथिता को बलवीर | चेश् अथ रॉमीर को, सर तीन शुन धघीर || किधों सर को सर लग्यो, क्रिघों सूर की पीर | किघों सूर को पद लग्यों तन मन घुनत सरीर | सूरदास थिन पद रचना अत कौन कव्रिदि करि आये है सूर-कवित सुनि कौन कवि जो स्टि सिर चालन करे ! खोज में सूएदास के निम्नलिखित अंथों का पत्ता चला है 5 १. सूर-साराचली; २८ सुर ागर (श्रपूर्ण); दे. साइित्य-खदरी (दृष्टि सूटकेन्पदाच जी), ४० ब्याइलो; ० नजदमयंती; ६ हृरिवंरा टीका 1 इनमें से धंतिम तीन संथ श्रप्राप्य हैं श्रोर संदिग्ध भी हैं । संभव है ये पुस्तकें किसी श्रन्य सूगदास की लिखी दो । “सिर- सारावली” शरीर 'साइिस्य-लहदरी,” 'सुरसारा(' से संकलित की गई हैं । सुत्तरामू , सूर-सागर ही सूरदाप का एकमात्र चूददू ग्रन्थ है । इस अऋसाघ सागर में घ्रनेक ब्मूदय दिध्य रख भरे पढ़े हैं । नीचे कुछ पद उद्धृत किये जांते हैं : बविलाचत चरनकमल चन्दीं हरि राई | जाफी कृग पंगु शिरि लंघे, श्रंपे को सब्र कट दरसारे ॥ वद्िरों सुने, पूक पुनि बोलें, रंरू चले सिर छुतह घराई | 'सूगदास” स्वामी वायणामय, वारवार बन्दों तिदि पाई 1 १॥ शराजा । ररगड़ा । कर जदय 1 चर




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