हिंदी महाभारत | Hindi Mahabharat (shalya Parva)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
49.9 MB
कुल पष्ठ :
888
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जय ३०१४
उधर महावीर झजुन रथ-सेना की श्रार बेग से बढ़े । महाबली सात्यकि श्रौर नडुल- 3०
सहद्रेव उत्साह के साथ भपटकर कौरवसेना का संद्दार करते हुए शकुति के सामने पहुँचे । वे
तीच्ण बाणों से शकुनि के साथी घुड़सवारों के। मारते हुए बड़े वेग से शक्कुनि की श्रार चले ।
शकुनि के योद्धा भी बड़े वेग से उनकी श्रार चलते श्रीर घोर युद्ध होने लगा । भ्रजुन भी ब्रिलोक-
प्रसिद्ध गाण्डीव धनुष का शब्द करते हुए रथ-सेना की श्रार बढ़े । श्रीकृष्ण-सथ्चालित सफेद घोड़ों
से शोमित रथ पर श्रजुत को श्राते देखकर कारवसेना के योद्धा डर के मारे भागने लगे । रघों,
हाथियों श्रौर घोड़ों से हीन तथा बागों से छिनन-मिन्न जिन पचीस हज़ार पैदलों ने आक्रमण
किया था, उन्हें शीघ्र ही मारकर धृष्टयुम्न सहित मदारथी भीमसेन भी वहीं पर आरा गये । महा-
धनुद्धर, श्रीसान्, शत्रुमद-म्दन, महायशस्त्री, पाश्वालराज धृप्टयुन्न को कोविदार-चिह्न-युक्त ध्वजा
घ्रोर अवलख घोड़ों से शोमित रथ पर श्राते देखकर कोरबसेना के लोग डरकर भागने लगे |
शीघ्र शख चलानेवाले गान्धारराज शक्ुनि का पीछा कर रहे सात्यकि श्रौर नकुल-सहदेव भी
शीघ्र ही बहीं देख पड़े । चेकितान, शिखण्डी श्रोर द्रौपदी के पाँचों पुत्र श्रापकी सेना को भार-
कर शपने-श्रपने शह्ठ बजाने लगे । साँड़ को हराकर साँड़ जेसे उसका पीछा करता है, वैसे ४०
, दी पाण्डवपक्त के सब वीर झापकी सेना को विमुख करके उसका पीछा करने गे । बची हुई
कौरबसेना को युद्ध करने के लिए उद्यत देखकर महारथी श्रजुंन क्रोध से अधीर हो उठे । वे बाण
बरसाकर उसे पीड़ित करने लगे। उस समय सेना की दौड़-धूप से इतनी धूल उड़ी कि छुल्ल भी
.. नहीं सूकता था । ऐथ्वी पर बाण छा गये थे घ्ौर आराकाश में धूल छाई हुई थी, इससे सब श्रार
अँघेरा ही श्रैंघेरा हो गया। सब कौरबसेना शक्धित श्रौर उद्धिग्न होकर भागने लगी ।
हे छुरुराज, सबको भागते देखकर दुर्योधन बड़े वेग से शत्रुसेना की श्रार बढ़े । राजा
बलि ने लैसे देवताओं का सामना किया था वैसे ही श्रकेशे दुर्योधन पाण्डवपच के सब वीरें को
युद्ध के लिए ललकारने लगे । वे लोग भी कुद्ध होकर, बारम्बार श्रनेक शख चल्लाते तथा भरत्सना
करते हुए, दुर्योधन की श्रोर दौड़े । उस समय हम लोगों ने श्रापके पुत्र का श्रदुभुत पौरष
. देखा। पाण्डवपक्ष के भ्रनेक वीर एक दुर्योधन को विमुख नहीं कर सके। दुर्योधन मे
देखा कि उनकी सेना बेतरह घायल होकर थोड़ी ही दूर पर खड़ी है घ्लौर भागना चाहती है, तब
वे उसे सुश्ह्लञा के साथ स्थापित श्रौर उत्साहित करने के लिए यें कहने लगे--हे याद! १०
मुझे वह स्थान नहीं देख पड़ता जहाँ जाने से तुम लोग बच सको । . प्रथ्वी पर, पहाड़ों में, का
में, जहाँ तुम जाश्नागे वहीं जाकर पाण्डव तुम्हें मारेंगे। फिर भागने से क्या लाभ पाण्कों
की सेना थोड़ी ही रह गई है, झष्ण श्रौर श्रजुन भी बेहद घायल हो रहे हैँ--थक भी गये हैं।
'ग्रगर हम सब मिलकर युद्ध करेंगे ते हमारी ही जीत होगी । भ्रगर ठुम पाण्डवों से वैर करके
भागोगे तो वे पीछा करके तुम्हें मार डालेंगे । इसलिए सामने लड़ते-खड़ते युद्ध में मारा जाना
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