काव्य कल्पद्रुम | Kavya Kalpdrum

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Book Image : काव्य कल्पद्रुम  - Kavya Kalpdrum

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(औओ ) हतमायिनी है जो प्रभात में जगत्पूडय भगवान्‌ सूर्य के दर्शन नहीं कर सकती । झथवा लोग यदद सम फते हैं कि कुसुदिनी इंब्यालु है जो भगवान भास्कर को नहीं देखती । इस प्रकार कुमुदिनी की निन्दा करने चाले लोग बडी भूल करते हैं--वस्तुतः वे लोग श्रपनी अनसिशता के कारण छुसुदिनी पर ऐसा आाशेप करके उसके साथ झन्याय करते हैं । हमारी इस बात पर घाप चोंकियेगा नहीं--कुछ ध्यान देकर सुनिये तो सही । राज-रमणियों का झसूर्यपश्या होना असिद्ध है। मतिभाशाली मददाकवि राज-पत्ियों को सदा से झसूयंपश्या ( सूर्य हारा भी इृष्टि-पथ न होने वाली ) कहते और मानते चले झाये हैं । केवज्न महाकवि ही सदी किन्तु असिद्ध व्याकरणाचार्य पाणिनि एवं ऐतिहासिक विद्वानों द्वारा सी राज-पत्नियों को यह गौरव उपलब्ध है। फिर झला कुमुदिनी द्वारा सूर्य को देखा जाना किस प्रकार सम्भव हो सकता है, श्राप कहेंगे कि कुसुदिनी एक रात्रि विक्राशिनी पुष्प जाति है, इसकी और राज- पत्नियों की क्या समता ? अच्छा, हम झापसे पूछते हैं कि विस्तृत काश सरल में व्याप्त समस्त तारागर्णों का क्या चन्द्रमा राजा नहीं हैं श्र क्या कुमुदिनी का पति होने के कारण चन्द्रमा का नाम कुमुदिनी- नाथ नदी है? झब झापद्दी कट्टिये, ऐसी परिस्थिति में राज-रमणी कुमुदिनी द्वारा सूर्य को न देखा जाना, उसके गौरव के अजुरूप है या नही ? यहाँ इस उक्ति-वेचिश्य में ब्याघात श्रलक्वार है। झर सी देखिये-- अरुण कान्तिमय कोमल जिसके दस्त-पाद हैं कमल-सनाल, मधुपावलि है शोसित कज्ल नीलेन्दीवर नयन विशाल! प्रातः संध्या कल खग-रव का करती सी आलाप मद्दान, भगी जा रद्दी निशि के पीछे अल्प-वयस्का सुता समान, --शिशुपालबघ से झनुवादित !




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