हिंदी साहित्य और उसकी प्रगति | Hinid Sahitya Aur Uski Pragati
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
7.3 MB
कुल पष्ठ :
236
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हिन्दी-साहित्य ओर उसकी प्रगति हिन्दी भाषा का जन्स वैदिक सस्कत भारत की सबसे प्राचीन भाषा है । इसका प्रमाण ससार का सबसे प्राचीन ग्रन्थ ऋग्वेद है । ऋग्वेद की भाषा वैदिक सस्क़त है । यह उस समय झार्यों की मातू-भापा थी । उस समय का साहिन्य भी इसी मे रचा गया जो वैदिक साहित्य कहलाता है । समय के साथ-साथ वैदिक सस्कत मे भी परिवर्तन हुआ । उसे गुद्ध करके उसका सस्कार् करके सस्कत भाषा बनाई गई । जब सभ्य श्रौर शिक्षित जनता सस्कृत बोलती थी तो ग्रामीण जनता मे उसका विकृत रूप प्रचलित था । धीरे-धीरे इसी विकृत रूप ने सभ्य श्रीर शिक्षित वर्ग में महत्त्व का स्थान प्राप्त कर लिया । यही भाषा पाली या प्रथम प्राकृत कहलाई 1 जब प्रथम प्राकृत्त भापा जन साधारण मे प्रचलित हो गई तब णिक्षित वर्ग नें उसे व्याकरण के नियमों में वाँघवकर साहित्योपयोगी बन दिया । जैसे विद्वानों ने प्राकृत भापा के लिए पाणिनि के समान ही सूत्र वद्ध व्याकरण तैयार कर दिया । उस समय का जैन-साहित्य ्रर वौद्ध- साहित्य उसी प्राकृतत भाषा में ही लिखा गया । पाली या प्रथम प्राकृत के णिक्षित वर्ग की भाषा होने पर तत्कालीन वोल-चाल की भाषा नें जन- मन में स्थान बनाया यह दूसरी प्राकृत कहलाई । यह प्राकृंत भाषा भी उस समय चार भागों में विभक्त थी--महाराष्ट्री लौरसेनी मागधी म्ौर अर्घेमागधी । जव दूसरी प्राकृत का विकास श्रपनीं चरम सीमा को पहुँच गया तो वह भी केवल शिक्षित समुदाय की भापषों बन गई । सर्वेसाघारण की
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