जैन - दर्शन | Jain - Darshan
श्रेणी : जैन धर्म / Jain Dharm, धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8.54 MB
कुल पष्ठ :
284
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about लालारामजी शास्त्री - Lalaramji Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)समान्नाय”” इस व्याकरण के सूत्र से भी अकारादि वणंसमूद अनादि
सिद्ध होता है । तथा इस णमोकार मंत्र के बराच्य परमेष्ठो,
झनादि हैं तो उनका बाचक यह खणमोकार मंत्र भी शअनादि हो
सिद्ध होता है । इसके सिवाय यह भी ध्यान में रखना चाहिये कि
संस्कृंत सित्य-लियम की पूजा के प्रारम्भ में ही णमोकार मंत्र
का पाठ पढ़ा जाता है और फिर “<£ अनादिमूलमंत्रे्यो नमः”
यह पढ़कर पुष्पांजलि का क्षेपण॒ किया जाता है । तदनंतर ' एसो
पच णमोयारो” आदि पाठ से णमोकार मंत्र का महत्त्व प्रगट किया
जाता है । इससे णमोकार मंत्र अनादि सिद्ध होता है। यह णमो
कार मंत्र और इसकी पूजा भक्ति श्रद्धा झादि भी मोचप्रद है, ऐसा
सिद्ध होता है । इसोलिये यह मानना पढ़ता है कि इसकी श्रद्धा भी
: सम्यग्दश॑न स्वरूप ही है, इसमें किसी प्रकार का संदेह नहीं है ।
. दूसरी बात यह है कि संग्कृत का व्याकरण अपरिवतनशील है
' और उसके अपरिवत्तेतशील होने से तज्जन्य प्राक़ृत भाषा भी
'अपरिवित्तेनशील है । इस सिद्धान्त के अनुसार अनादि काली न पंच
परमेष्ठी का वाचक णमोकार मंत्र भी डानादि है, इसमें किसी
प्रकार का संदेह नहीं है ।
जेनवर्शन नस्ल
अमनमणि
अब पंच परमेष्टी का श्रद्धा करना सम्यग्दशन कहलाता
हे-जेसाकि ऊपर बता चुक हू तो इस णमोकार सत्र में ्त्यत
अनुराग रखना भी सम्यग्दशन का चिन्ह या . लक्षण है । यही
कारण हे. कि समाधिमरण के समय अन्त कालमें जबकि इन्द्रियां
: शिथिल होकर कुछ काम नहीं करती-कंठ थी रुक जाता है उप्त
User Reviews
No Reviews | Add Yours...