हम सौ वर्ष कैसे जीवें | Ham So Varsh Kaise Jive

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( हद ) ढंग पर उपरोक्त विषयों में से एक एक पर विवेचना की गई है। कम से कम ५० सखास्थ्य सस्वन्धी पुस्तकें और बहुत से समाचार पत्रों को पढ़ कर इस पुस्तक की रचना हुई है । मेरा तो विश्वास है कि इसमें पाठकों को श्रौर विशेष कर विद्यार्थी समुदाय को स्वास्थ लाभ. बड़ी खुगमता होगी । इस विषय की पुस्तक के लिखने में मैंने वास्तव में ध्रष्टता की है। यह विषय डाक्टर्रों का है श्रौर उन्हें लिखना चाहिये किन्तु जब तक वे इस विषय को अपनी मातृभाषा हिन्दी में लिखने का साहस नहीं करते तब तक इस' पुस्तक को निकालने में में कोई हज नहीं समझता । इस पुस्तक के कुछ लेख “बाज” तथा दूसरे पत्रो में समय समय पर निकल चुके हैं और कई जस्यिों से मालूम डुश्रा है कि पाठकों को वे बहुत पसन्द आये हैं । इसलिये इन्हें पुरुतक सरूप में प्रकाशित करने का और भी अधिक साहस इुआ 1 “फारीर रचना” श्र “साधारण रोग और उनके उपचार” नाम के दो झध्यायों को दारागंज प्रयाग-स्युनिसिपल डिसपे- न्सरी के विद्वान डाक्टर हमारे परम मित्र डाक्टर घ्रजविहारी लाल सादव (1271. छिप] 68 ,91, कि, 50, व, छि 3ि, 5.) ने दमारी प्रार्थना पर लिखकर दिया है झतप्वव हम उक्त डाक्टर साइव के दृद्य से अत्यन्त कछतज्ञ हैं । शाप उन इने-गिने डाक्टरों में. से हैं. जिन्दें अपनी मातृसाषा हिन्दी से वड़ा प्रेम है और जो परोपकार बुद्धि से सदैव जन साधारण की सेवा करने के लिये तत्पर रहते हैं । “मादक द्रव्य” पर हमारे दूसरे मित्र पं० गणेश पारडेय ने अध्याय लिख कर दिया है अतपब्र सज़न भी घन्यवाद के पात्र हैं । इसके अतिरिक्त हम 'आज' पत्र के खुयो-




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