श्रीपाल - चरित्र | Shreepal Charitra
श्रेणी : काव्य / Poetry, जैन धर्म / Jain Dharm
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6.19 MB
कुल पष्ठ :
190
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)[ रैशे_]
समीप गई, और विनयपूर्वक नमस्कार कर मधुर शब्देंमें राज्िको
देखे हुवे स्वमका सब समाचार सुनाने लगी । राजाने भी रानीकों
उचित सम्मान पूर्वक अपने निकट लर्ध सिंदाप्तनपर स्थान दिया,
और स्वप्नका वृत्तान्त सुनकर कहा-'हे प्राणवलछमे ! तेरे इस
स्त्रप्ेझा फड़ अति उत्तम है अर्थात आज तेरे गर्भमे मददतेना्वी,
धघीर वीर, सकलगुणनिधान, चरमदारीरी नररत्न आधा
है | पचेत देखा, इप्तका फरु यह है कि तेरा पुत्र बडा गंभीर
साहसी, पराक्रमी मीर बलवान होगा, तथा उसका सुव्ण सरीखा
वर्ण द्ोवेगा, और कल्पवक्ष देखा दै इसे व बहुत ही उदा-
रचित्त, दानी, दीनननप्रतिपाठक और घमेज् होगा । तात्पर्य-तेरे
गमसे स्वगुणपम्पत्न मोक्षयामी पुत्ररत्न होगा । इस प्ररार दस्पति
( राजारानी ) स्प्नका फल जानकर वहुत ही प्रफु लुखत हुए,
और सुखपृ्ंक कालक्षेप करने ठगे ॥
ली पर जद ज
(४) थ्रीपाठलक जन्मका चणन |
टू एयनके चन्द्रके समान गर्भ दिनोंदिन बढ़ने कगा और
बाहा चिन्ह भी प्रगट होने लगे, शरीर कुछ पीाप्ता दिखने ढगा,
कुच उन्नतरूप और दुग्वपूरित हो गये, नेत्र हरे हो गये, और
दिनोंदिन रानीको झुभ कामना (दोहदला-इच्छा) ये उत्पन्न होने
करगी ॥ इम प्रकार आनन्दपूर्वेक देश माप्त पूर्ण होनेपर ित
प्रकार पूर्व दिशासे सुथ्रेका उदय होता है, उस्ती प्रकार रतीं
कुम्दप्रभाके गर्मसे शुभ हमें पुन्नरत्तकी प्राप्ति हुई ।
जन्मते ही दुर्जन पुरुषों व शन्लुओंके घर उत्पात होने ढंगे, और
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