संगीतांजलि भाग 1 | Sangeetanjali Part 1

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Sangeetanjali Part 1 by पं ओमकारनाथ ठाकुर - Pt. Omkarnath Thakur

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हरे ही स्था है. दर यों आज के प्रचार में संगीत में गीत और वाद्य का ही स्थान रह गया है दृत्य को ए्थकू कर दिया गया है । यों हो हे... गान या वादन के समय सुनने वाछों का ध्य न गान या वादन की ध्वनि की ओर अधिक रहता है किन्तु यह भी सत्य है ल्‍ के कि गायक के चेहरे पर झलकने वाले भावों से और उसके हाथ चछाने के ढंग से राग के और गीत के भाव का दर्शन | हद हा होता है। राग और गीत के भाव को अमिव्यक्त करने के लिए गायक को अभिनय का. सहारा लेना पड़ता है और इस डै प्रकार स्वर लय और अभिनय मिलकर ही गीत को पूर्ण बनाते हैं और वही संगीत कह्मता है। शायद इसीलिए हक अभिनय का महत्त स्वीकार करते हुए शास्त्रकारों ने दत्य का संगीत में समावेश किया है। दूसरा कारण यह भी हो सकता पा नहर है कि दत्त या दत्य वाद्य और गीत पर निर्मर है इसीढिएं उसे वाद्य और गीत के साथ-साथ रख दिया हो । गीत की प्रसुखता को कुछ मिन्न दाब्दों में फिर से समझ लें । जो विद्यार्थी कोई वाद्य थोड़ा सा भी बजाते होंगे वे इस बात को बहुत आसानी से समझ जायेगें कि कोई भी वाद्य बजाते समय हम हमेशा मन में सोचते या शुनगुनाते रहते हैं और मन में जो सोचते या गुनगुनाते है वही हद बजाते हैं । इधर तरह गाने का ही अनुकरण बजाने में होता है चाहे वह केवल स्वर हों या गीत के शब्द हों य। गत के वर्ण हों । दत्य में वाद्य का सहारा तो ज़रूरी होता ही है साथ ही गीत के अर्थ या भाव को अभिनय द्वारा सष्ट करने का भी ध्यान रखा जाता है । इस तरह भी दत्य गीत का सीधा झनुस ण. करता है । साथ ही दृत्य को वाद्य का और वाद्य को गान का अनुगामी बताकर भी गान को ही प्रमुखता दी गई है। संगीत के मुख्य तत्व या उपकरण संगीत में हम मुख्य रूप से दो विशेषताएँ समझते हैं--एक तो ध्वनि की या. और दूसरे काल की नियमित गति । ध्वनि यदि कानों को सुनमे में रंजक न ढगे तो उसे हम संगीत के उपयुक्त नहीं मानते | इसी तरह यदि कोई नियमित गति न हो तो भी संगीत नहीं बन सकता । इन्हीं दोनों बातों को संगीत की भाषा में स्वर और लय कहहते हैं और संगीत के यही दो मुख्य तत्व हैं। अब हम स्वर और लय सम्बन्धी विषयों को . क्रम से अपल-मलग समझ लें । स्वर सम्बन्धी विषय नाद संगीत के प्राचीन अ्रन्थों में स्वर को समझाने से पहले नाद की ही व्याख्या की गई है । आज भी हम पहले नाद को समझ कर ही स्वर की बात करते हैं क्योंकि स्वर का आधार नाद ही है और इस प्रकार वही संगीत का भी आधार है। इसलिए पहले नाद को अच्छी तरह समझ लेना ज़रूरी है | .. री नाद शब्द का दो रूपों में प्रयोग होता है--एक उसके व्यापक अर्थ में और दूसरा संकुचित अयथं॑ में । प्राचीन. अ्न्थकारों ने नाद को व्यावक अर्थ में ही समझाया है । आजकछ नाद से जो अथे छिया जाता है वह उसका संकुचित रूप है। नाद के व्यापक रूप में सभी प्रकार की ध्वनि आ जाती है चाहे वे संगतोपयोगी हों या न हों रंजक हों या क्णुकटु न




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