गीता हमें क्या सिखलाती है | Geeta Hame Kya Sikhalati Hai

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Geeta Hame Kya Sikhalati Hai by पं राजाराम प्रोफ़ेसर - Pt. Rajaram Profesar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गीता हमें क्या सिखलाती है थ्‌ नफैलाया है, उसको अपने-करव्य से ऐूंजकर मतुष्य सिद्धि को पाप्त होता है । १-वर्णोंचित दुसरे कर्तव्य के साथ वैदिक यज्त,जिनने कि मनुष्य का कत्याण अभिमेत है 'वदद भी पुरुष के 'छिये अंप्रदेय जनुपेय हैं।- यज्नशिष्टाशिन: सन्तो सुच्यन्तें से किल्विष 1, भुझ्ते ते खे पापा ये -यचन्त्या्मकारणातू ॥ २! 3 जो यश का घचा हुआ अन्न खाते हैं, बह सारे पापों से छूट जाते हैं, पर बह पापी निरा पाप खाते हैं, जो अपने दी निमित्त पकाते हैं। अन्नाद भवान्ति भ्रतानि पजन्यादन्नसभव: । ' यज्नादू भवंति प्जन्यो.यज्नः कर्मसमसुद्धव:..॥ रै। १४ कम बहने विद बह्माक्षरसमुद्वमू । - तस्मात्‌ स्वगते अहम निर्ये ये प्रातिथितमु॥ १५९ : एवं प्रवर्तितं चक्क॑ नाजुवर्तयतीह यः अधायुरिन्ियारामो मो पार्थ स जीवति ॥ १६ सब माणधारा अन्न से उत्पन्न हाते हैं,अन्न मघ से उत्पन्न होता हैं, मंघ यज्ञ से उत्पन्न हाता हैं, यज्ञ कम है उत्पन्न हाता दे | ४ कम को वेद से उत्पन्न हुआ जांन,ेद अविनाशी(परमात्पा)ते उत्पन्न हुआ है, इसलिये सर्वव्यापक ब्रह्म यज्ञ में सदा स्थित हे ( अर्थात्‌ . यह करने वछि पर अपना स्वरूप मकाश करता है ) । १५। हे जजुन ! इसप्रकार के चढाये हुए श्वक्क का जो(पुरुष) अनुसरण नहीं




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