धर्म के नाम पर | Dharm Ke Name Par

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Dharm Ke Name Par by आचार्य चतुरसेन शास्त्री - Acharya Chatursen Shastri

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about आचार्य चतुरसेन शास्त्री - Acharya Chatursen Shastri

Add Infomation AboutAcharya Chatursen Shastri

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
( २२ ) वन जांती । झव मैं पू छता हूँ कि यहां छल करके कृष्ण ने अधमे किया या नहीं | हिंसा की वात भी विचारनी चाहिये । में एक चींटी को सार कर हृत्यारा कहाता हूँ परन्तु एक सिपाही असंख्य मनुष्यों का वध करके भी वीर कहता है । क्यों ? युद्ध में भी तो हस्या होती है ऐसी दृत्याएं करने वाले पापी अधार्मिक क्यों नहीं । इसी प्रकार प्रत्येक लक्षण को हम यदि कसौटी पर करें तो हम धर्म के इन द्श लक्षणों पर निर्भर नहीं रह सकते | दर्शन-शाख्र बताते हैं. यतो अभ्युद्य निःश्रेयस सिद्धि सर्म जिस काम के करने से अभ्युदय और निश्न यस दोनों की प्राप्ति हो वही धर्म है । झभ्युदय का अर्थ है ऐहिलोकिक सर्वोच सुख जिस में सब प्रकार की व्यक्तिगत और सामूहिक स्वाधीनता अधिकार प्रणाली जीवन तारतम्य को घाराएं आगईं । निःश्रेयस का अर्थ है--पारलोकिक सर्वोच स्थिति अर्थात्‌ सुक्ति । सुक्ति का अर्थ यह है कि जीवन के अन्तस्तल में मदुष्य की सब वासना इच्छाएं दप्त हो जायें उसका मन सब वस्तुओं से विमुक्त दोजाये उस के सब बन्धन नष्ट हो जाये । वदद जन्म न घारण करे । यही सुक्ति है । मुक्ति के लिये मनुष्य को ऐहिलौकिक कम इस भावना से करने छानिर्वाय हैं कि वद्द उनमें तनिक भी लिप्त न हो ओर ऐसा व्यक्ति अभ्युद्य की प्राप्ति नही कर सकेगा । इसी लिये ऐसे मनुष्य- जो मुक्ति +की भावना के लिए ऐहिलोकिक सब स्वार्थों और




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now