भारतीय संस्कृति | Bhartiya Sanskriti

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
श्रेणी :
Bhartiya Sanskriti by पांडुरंग सदाशिव साने - Pandurang Sadashiv Sane

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पांडुरंग सदाशिव साने - Pandurang Sadashiv Sane

Add Infomation AboutPandurang Sadashiv Sane

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
श्८. मारतीय संस्कृति स्दियां पानी दे डालती हूँ, सुर्य-चत्द प्रकाश दे डालते है। उसी श्रकार जो-कुछ भी है बह सबको दे डालें। सब मिलकर उसका उपभोग करें। आकाश के सारे तारे सबके लिए हूं । ईश्वर की जीवन दायिनी हवा सबके लिए है । लेकिन गनुप्य दीवारें खड़ी करके अपने स्वामित्व की ,जायदाद बनाने लगता है। जमीन सबकी है। सब मिलकर उसे जोतें, वोएं व अनाज पैदा करें। लेकिन मनुष्य उसमें से एक अलग टुकड़ा करता है और कहता है कि यह मेरा टुकड़ा है | उसीसे ही संसार में अशान्ति पैदा होती है, दरुप-मत्सर उत्पस होते हु, स्वयं को समाज में घुला-मिला देना चाहिए) पिण्ड को ब्रह्मांड में मिला देना चाहिए। व्यक्ति आखिर समाज के लिए हूँ, पत्थर इमारत के लिए है, बूंद समुद्र के लिए है। यह अद्वत, किसको दिखाई देता है ? कौन अनुभव, करता है? इस अद्वैत को श्रॉवन में लाना ही महान आनन्द हे हे ग लारो ओर लाखों माई दिखाई देते हूं उसे कितनी कृतकृत्यत्ता अनुभव होगी । संतों को इसी वात की प्यास थी, यहीं. घुन धथी-न थहू सोभाग्य प्राप्त कब होगा जब सबमें देखूंगा ग्रह्म्प तब होगा सु का पार नहीं लहरेगा.. सुल्ल-सागर अपूप जिसे सारा समाज अपने समान ही पूज्य प्रतीत होता है, प्रिय « प्रतीत होता है, उसके भाग्य का वर्णन कौन कर सकता है ? जिघर दवा उधर चैतन्य मूति दिखाई देती है। जहां-तहां चंतन्यमय मूतति हो दिखाई दे रहो है। कंकर-परथरों में चैतन्य देंसकर शूमनेवाला सन्त कया मनुष्यों में चैतन्य नहीं देखेगा? सच तुम्हारे चरण देखता सब दूर तुम्हारा रुप भरा सब दूर वही स्वरूप हैँ, चेतन्यमय आत्मा का स्वरूप है।




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now