भरतेश्वर - बाहुबलि रास | Bharateshwar - Bahubali Ras

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४] भारतीय विधा & अजुपूर्ति & [वर्ष रै खर रवि पूंदीय मेहरवि, महियलि मेहंघार हु । उजूआठइ आइध तणईं, 'वालईं शयखंघार हु ॥ दै७ मंडिय मंडलवदद न मुद्दे, ससि न कब सार्मत हु । शाउत राउतवर रददीय, मनि मूंझाइं मतिबंत हु ॥ भेद कटक न कंचणिहिं: मर तणु, भाजइ भेडि भडंत हु । 'रेलईं स्यणायर जमले, राणोराणि नमंत हु ॥ ३९ साठि सहदस संचच्छरदं, भरइस भरद छ संड हु । समरंगणि साध सधघर, बरतइ आण अखंड तु ॥ ० वार चरिस नमि विनमि, भड सिडीय समनादीय आण छु । आघबाठी तडि गंग तणइ, पामइ नव निद्दाण हु ॥ ४ छन्नीस सहस मउडुघ सिउ॑, चऊद रयण संपत्त हु । आविष गंगां भोगवीय, एक सहस बरसाउ हु ॥ ४९ जः ठवणि २. तर तिहिं आउधसाऊ, आवइ आउघसड नदि । तिणि सिणि सणि भूपाउ, भर भयह उोठावडओ ॥. ४३ चाहिरि बहुय अणाढि, ज्ुआरीय अदनिसि करइ ए । अति उतपात्त अकाछि, दाणव दछ बरि दापच ए ॥ ््े मतिसागर किणि काजि, चक्त त(न) पुरि परवेस करइ । तई जि अस्हारइ राज, घोरीय घर घरीड घरदइं ॥ शव देव कि थंमीउ एय, कवणि कि दानव मानविद्िं एड जासि न मुझ भेउ, चयरीय बार न छाईइ ए ॥ 2 वोलइ मंत्रिमयंकर, सांभलि सामीय 'चक्कघरो । अर नहीं फोइ चंकजु, 'चक्कर्यण रहा तणउ ॥ संकीय सुरवर सामि; भरदेसर चूंय भूय भवणे । नासई ति सुणीय नामि; दानव मानव कहि कबणि ॥। ४८ नवि मानई तूंय आण, चाहूबलि विहुं वाहुवले । वीरदद चयर दिनाशु, विसमा विददडई बीरवरो ॥ ठीणि कारणि नरदेव, चकक न आवइ नीय नयरे । दिण वंघब दूंय सेव, सहू कोइ सामीय साथवइ ए ॥ ४९ ५५




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