धरती धन | Dharti Dhan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ है में करो में भी वृद्धि होती गई । गुप्त एवं गुप्तो्तरकालीन थिला लेखों में जो वर्णन मिलते हू (१) उदंग कर, यह जमीन की वन्दोवस्ती के समय लिया जाता था । (२) उपरिक, उन किसानों से चसूल किया जाता था जिनका जमीन पर किसी प्रकार का हक नहीं होता था । इसके श्रतिरिक्त दट, अवट, हिरण्य, विप्टिक आदि कर वसूले जाते थे । उस समय श्रपराघ कर श्रघिक माना में कर वसूला जाता था । मानसिक, कायिक श्रौर वाचिक तीनो प्रकार के श्रपराधों के लिये लोगो को दड देना पदता था । धन तोन प्रकार के अपराधों की तीन-तीन शारदाए होती थी । भोगभाग श्रादि प्रन्य कई प्रकार के कर भी लागू होते थे, वसूले जाते थे । प्राचीन प्रन्यो के सिलसिले वार भ्रध्ययन से यह पता लता है कि गावों का शासन सम्पूर्ण, नर्वा एवं समीचीन था । जनता की शभ्राथिक सामाजिक, ने तिक, घामिक एवं सास्ठतिक उन्नति भरपूर हुई थी । ग्राम का सघटन एकदम व ज्ञानिक तरीके से किया गया था | ग्रामीणों में पूर्ण एकता, पारस्परिक सद्भाव था | विशेष कर प्राचीनकालीन जनगणना वित्चुल भ्रत्याचुनिक चीज है जिसका इस युग में भी श्रनुकरण होना चाहिये । दस गावो की यूनियन को बन्निग्रहण कहते हे । दो सी गाव मिलकर. क्दतिक कहलाते थे , चार मौ साद भ्रौर भाठ सौ गाव को माताग्राम कहा जाता था । इसके लिए प्रशासनिक थब्द स्यानीय था जो श्राघुनिक थाने से कुछ मिलता था । एक गाव में एक सौ से लेकर पाच सो तक परि वार रहते थे । उसके चाद के साहित्य मे यह उत्लिखित है कि शासन में दकाक नियम का प्रचलन हुमा जिसके मुताबिक दस गावों पर शासन करनेवाला दकग्रामी फहलाया, वीसगावों वाला विदयतिया श्रौर सो गावों का प्रशासक सतकग्रामी कहलाया । ये सबके सब श्रधिपति के मातहत रहते थे जो हजार गावों पर प्रणासन करता था 1




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