नागरीप्रचारिणी पत्रिका Bhag -12 | Nagaripracharini Patrika Vol. 12

Book Image : नागरीप्रचारिणी पत्रिका Bhag -12  - Nagaripracharini Patrika  Vol. 12

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about श्यामसुंदर दास - Shyam Sundar Das

Add Infomation AboutShyam Sundar Das

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
उयी तिष प्रबन्ध न सन्‌ डे० से २९९ वष पू्ँ नि देश का एक माजा, जिसका नाम त्सो-चो-हाड्ठ टो. (ए-टाण-पिण्ण्ट- पा था, ज्योतिष का बढ़ा पणिडत हो गया, । इसने इस विद्या की उन्नति में बहुत सहायता दो थी और वेघालय इत्यादि बनवाए थे। चीन में डूस विद्या को राजनीति का एक झंग गिनते थे और उन उपोिधिस्रे, को «द्राड दिया जाता था जिनकी गणना में भूल होप्ती थी । ऐसी अवस्था में विश्वास किया जा सकता हैं कि वहां के ज्योतिषीगण “बुड़ी सावधानी के. साथ यहां की गतियें का निरीज्ञण और जनको* गणना करते रहे होंगे, फिर क्या न. दस विद्या की वद्धि होती । यनानियों को ज्योतिष । युरोप में इस विद्या को -सबसे पहिले अरखिये। ने प्रचारित किया था तथापि यूरोप निवासियों ने सुनानियें के ग्रन्थों की बहुत छान बीन की और उससे बहुत कुछ नदूं बाते उन्होंने जानों । इसलिये इस जाति को विद्या की ग्रहुत सी सविस्तर बातें लिखी गई हैं । इस विद्या का प्रचार रूस जाति में थेली ज ( ०1८5 नासक विद्वान के समय से पाया जाता है | यह व्यक्ति सन इं० से पूव ६४० वष के लग झऋग हुआ था । पाश्यिमात्य बिट्टानें का कथन है कि इसीने पहले पहिल जाना था कि एश्वी . गोलाकार है परन्त इसका सिद्धान्त था फकि सारादिक * अग्निपिगढ हैं। ः इसके पश्चात एनेक्सिमेन्द्र ( ह00510090 07) ले यह ' सिद्ध किया कि एथ्वी अपनी अक्ष अधात कीगीं पर घूमती है आर चन्द्र का प्रकाश साय को ज्योति से है । श २




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now