भिखारी दास भाग - १ | Bhikhari Das part-i

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १४५ ५--पूर्ण लिपि० १६४७ वि० प्रासि०--श्रीक्ृष्णविहारीजी सिश्र . माडेल हाउस लखनऊ ( खोज २६-६१ एम ) | ६--पूर्ण लिपि० श्रनुल्लिखित प्राप्ति ०--श्रीरामबहादुर सिंह बढ़वा . प्रतापगढ़ ( २६-६१ एन ) | इनमें प्रथम वही हैं जो काशिराज के पुस्तकालय में सुरक्षित है । इसमें मिखारीदास के सभी साहित्यिक अंथ एक ही समय के एक ही जिव्द मे हे 1 ंगारनियाय में लिपिकाल श्रनुल्लिखित है पर काव्यनिर्शय मेँ १८७१ दिया गया है | श्रतः इसका लेखन १८७१ के पहलें हुमा होगा | श्रगारनियय के द्नंतर काव्यनियय की प्रतिलिपि की गई है इसलिए. इसमें सबसे पहले रससारांश हैं ( ४८ पन्ना ) फिर श्रंगारनियय ( ४६ पतना ) फि काव्यनि्य ( १७१ पन्ना ) फिर छुंदाणाव (६७ पन्ना ) अंत में छुंदप्रकाश (४ पन्ना )। इसलिए रसधारांश श्र शुंगारनियय सं० १८७१ के पूव या उसी वर्ष श्रौर छुंदार्शव सं० १८७१ या उस वष के व्यन॑ंतर १८७२ में लिखा गया होगा । इस प्रकार रससारांश के सभी ज्ञात हस्तलेखों से यह प्राचीनतस है । संख्या दो की खंडित प्रति श्रौर संख्या ४ की १८६५७ वाली प्रति इससे बहुत कुछ मिलती दे । संख्या ५ का. १६४७ वाला हस्तलेख संख्या ४ से मिलता है । इसलिए यह भी उसी परंपरा का हे | संख्या ३ की प्रति जिसका लिपिकाल अज्ञात है भारतजीवन प्रेस के छुपे संस्करण ( सं० १६४६ के श्रास-पास मुद्रित ) से मिलती है। संख्या ६ के उद्धरण खोज में छापे नहीँ गए. है । पर लिखा है कि यह प्रति संख्या ४ वाले दस्तलेख से मिलती है । संवत्‌ १६३३ के हस्तलेख के श्राघार पर प्रतापगढ़ गुलशन ्रदमदी प्रेस से लीथो में सं० १६४८ ( सन्‌ १८६१ ) में सुद्रित संस्करण के पाठों की शाखा दोनों से बहुधा मिन्‍न दे। इसके लिए तीन प्रतियाँ श्राघार रखी गई है न सर०--सरस्वतीमंडार ( काशीराज ) का हस्तलेख लिपिकाल संग १८७१ के पूव _ लौथो-युलशन शरदमदी प्रेस प्रतापगढ़ से सन्‌ १८६१ में सुद्रित । मार ०--भारतजीवन प्रेस में सं० १६९६ के लगभग सुद्रित प्रति । छदाणव खोज से छुंदाणंव की श्राठ प्रतियाँ का पता लगता है-- १--पूर्ण लिपिकाल सं० १८७१ के श्नंतर प्राप्ति०-काशिराज का पुस्तकालय ।. ( खोज ३-३१ ) |




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