भास - ग्रन्थावली | Bhas Granthawali

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[. राजसूय और अश्वमेध यज्ञ किया था । इसमें भाष्यकार पातंजलि भी सम्मिलित थे । इससे सिद्ध होता हे कि यद्द चक्रवर्ती सम्रादू रहा होगा । इसके राज्य में परचक्रमय का श्ाभास तो अवश्य सिलता हैं, परन्तु देसा भयंकर नहीं जैसा कि भास ने अपने नाटकों में कहा है । श्रीयुत गणपति शास्त्री जी का अनुमान है कि भास ने चाणक्य की रचना से कई भाव लिये हैं, श्औौर 'नवमू शरावम' वाला शोक 'विकल रूप से अपने “प्रतिज्ञा योगन्ध- रायण नाटक के चतुर्थ अक्क मे रख दिया हैं, परन्तु यह तक उपयुक्त नहीं । भास उन स्वाभिमानी कवियों में से थे जिन्होंने भगवर्गीता जैसे छादशे श्न्थ के स्दोको को झछपना रूप टेकर ्रहण किया हैं। तो भला चहद चाणक्य के सग्रेक को विकल रूप सं केसे यदण कर लेते? क्या वे इसी भाव को ऐसी सुन्दरता के साथ व्यक्त नहीं कर सकते थे ? चाणक्य महाराज चन्द्रगुप्त के मंत्री थे । भास का चन्द्रगुप्त के समकालीन दोना सिद्ध किया गया हैं । इसलिए भास और चाणक्य समकालीन भले ही न माने जा सकें, परन्तु इनमें शताठ्दियों का अन्तर नहीं हैं । श्रीयुत गणुपत्ति शास्त्री जी ने भास को भगवान पाशिनि से भी पहले माना है । वह भी केवल इस आधार पर कि उन्ददोंने पाणिनीय न्याकरण की अवहेलना की है, परन्तु यह तक समी चीन नहीं जचता । इतिहास विशारद श्रीयुत सर रमेशचन्द दत्त तो पाणिनि को श्वश्य इसा से ८वी शताब्दी पूर्व का मानते हैं, परन्तु प्रोफेसर 'मोक्षमुलर' और 'वॉधलिक' सहोदय इन्हे इसा से चतुथ शत्ताद्दी पूव का मानत हैं । यदि इन महानुसावों का सत प्रामाणिक साना जाय तो भास का समय इसा से ३२४ वप पूव माना ज्ञायगा;




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