श्राद्ध मीमांसा | Shraddh Mimansa

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Shraddh Mimansa  by पं. भीमसेन शर्मा - Pt. Bhimsen Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(१ ९१ पूर्ण शुद्ध पूण धद्धा सक्ति युक्त, पूर्ण घर्मात्सा ष्टो पि्तर साझाव्‌ भी दोख पढ़ते चा दुर्शने देते हैं इस बात थी जताने के लिये श्रुति में इव दे कहा है। यह भी ध्यान रहे कि शतपथ न्ञाह्मण के उक्त दोनों स्साण श्ौत कर्मों सस्थस्घों पिरड पितुयक्त प्रकरण रे हैं इस कारण मद्दीने २ में पास चार सोजन पिघरों को पिरड पिचूयन्त द्वारा मिलता है किर्दु पत्च मदायप्ादि सित्यचर्स जो न्य शुस्तियों से चिहित है उससे चित्यश्राद्ध वा नेस्पिक पितूयघ द्वारा सामान्य पितरशेकफो वनिस्य शोजन मिलता दै उसका य्दीं खरउन नहीं दे 1 शहरहः स्वेघाकुर्यादीदपाचात्तयेत पितृयन्न समा+ सीति । धशतप० कोण १९ । प० ३ । घ्ा० प । को २ मित्य २ अन्न वा फलमसूलादि के अभाव में जलमानसे भी ( पिछ... स्प खध्पानमः ) कददप्सर पिसररों के लिये जल छोड़ने मात्रसे शी पित्त थज् पूरा होनाता है । इस घ्रकार मासिक पिंड पिछयत द्वारा मददीने २ में पक धार पितरीं को भोजन भाप दोना गीर नित्य पिठ थश्न द्वारा नित्य शोजने मिलना दोनों डोक हैं, परस्पर चिरुखे नहीं; क्यों कि--श्रुति हूं घन्तु यत्रस्यात्तत्रथर्माघुभीसूम्टती । इस मंझु अण २ के कथनाजुसार शू लि घमाणं की प्रबलसा से सासिक गौर ईित्य दोनों प्रकार च्के पिततयए 'कर्सब्य को दिकें श्रर्म हैं । क 'दर्क्षिणामवणो थे पितुलोकर: 1 प्रातप- रु ४ ॥ ४1७0 दद्सिण की छोर भुका छुगा पिवुलोक है 1- अर्थात्‌ देव मनुष्य शौर पितररोके लोच्स अलग २ स्वतन्न्र हैं । शतपथ श३ 1 ४1४1५. उसे ईदेशावन्तरेण रविदधाति माचीं च दस्षिणां चेत- स्याश्श्ह दिशि पितूलोकस्य द्वार द्वारवेन पितुलोकं सपादयति भ यहाँ दात पथमें इमशा न. चनाने का चिघान है इसके लिये कदा है कि शाम नगरादि से पूर्व दश्सिण दिशा के चीच आमग्नेय कोणमें अलु- 'ब्कॉण चेदि बनावे | क्यींकिं इसी आग्तेय दिशा में पिदलोकका द्वार 'है। ऐसा इमशान चबाने चाली इस स्त्तक को द्वार के मार्ग से पिंचलो के को पहुंचती हि 1 नी




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