रामायण उपदेश रत्नाकर | Ramayan Updesh Ratnakar

Ramayan Updesh Ratnakar by तुलसीदास - Tulaseedas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(११) ब्राह्मणसेवा । बनारस हर दोहा । मन क्रम वचन कपट ताजे । जो कर भूसर सेव । मोहि समेत विरंतचि शिव । बच्च ताके सब देव ॥ सगुण उपासक परम हित । निरत नीति दढ़नेम । ते नर माण समान मम । जिनके द्विज पद प्रेम ॥ नचौपाई ॥ विप्र बंश की अस मथुताई । अभय दोइ जो हुमहिं डराई । शापत ताड़त पुरुप कईता | विमर पूज्य झस गावहिं सता ॥ पूजिय त्रिम शील गुण हीना । शूद् न गुण गण ज्ञान भवीना ॥ _ पुन्य एक जगमह नहिं दूजा । मन क्रम बचने बिभ्र पद खूजा ॥ ''साधुकुक तोहि पर द्ानि देवा । जो तजि कपट कर द्विज सेचा ॥ बननननााय दे कूँदकीनाणाणाणाण




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