हिंदी निबंधमाला भाग १ | Hindi Nibandhmala Bhag 1

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Hindi Nibandhmala Bhag 1 by श्यामसुंदर दास - Shyam Sundar Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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११ सेदान में पहुँची समस्त नेत्र उसकी झाकर्षित हो गए। वह धीरे धीरे झापत्तियें के पव॑त पर चढ़ गई । उस्रका उस ढेर पर चढ़ना था कि वह ढेर पहले की श्रपेक्षा तियुना कम दिखाई देने लगा न जाने इसमें क्या भेद था कि जितनी झ्ापत्तियाँ थीं सभी कठोरता-रह्चित श्रौर कामल दिखाई पड़ने लगीं । मैं भ्रति व्यग्र हो इस देवी का नाम पूछने लगा । इस पर एक दयावान्‌ ने मिड़ककर उत्तर दिया रे मुख तू क्या इनसे परिचित नहीं है ? इन्हीं का नाम धघीरता देवी है । ये देवी प्रत्येक मनुष्य का उसका पूवे भाग बाँटने लगीं श्रोर साथ दी साथ सबको समसाती जाती थीं कि इस संसार में किस प्रकार श्रपनी अपनी श्रापत्तियों को पेयेपृवक सदन करना उचित है । जो मनुष्य उनकी वक्ता सुनता वह संतुष्ट हो वहाँ से जाता दिखाई देता था । में इस रूपक कं देखने में ऐसा निमम था कि सारी मनुष्यजाति अपनों श्रपना भाग ले झपने अपने निवास-स्थान का सिधारी पर मैं वहीं ज्यों का त्यां खड़ा सब लीला देखता रहा यद्दाँ तक कि जब उस ख््री के पास जाने श्रौर झपना विपत्ति-भाग लेने की मेरी बारी आई तब भी मैं अपने स्थान से नहीं टसका । इस पर एक श्रादमी मेरी झोार झ्राता दिखाई पड़ा । मेरे पास आते ही पहले ते वद मुझसे कहने लगा कि तुम वहाँ क्‍यों नह्दीं जाते ? इस पर में कुछ उत्तर दिया दी चाहता था कि ऊँ ऊँ ऊँ करके उठ बैठा घ्ौर नींद खुल गई ।. नींद खुलते दी नेत्र फाड़ फाड़कर




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