तुलसीदास | Tulsidas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(४) रिषु के समर जो. था. प्रच आतप यों तम पर करोइड ; निश्चल अब चहीं वे भा गत 3 सुरभि; ऊुरबक “- समान सतत पंत पर; चित्य श्राणण + बीता उत्सव उयों; चिह्न ग्लान; छाया शराथ 1 (५) वीरों का गढ़, पहू फालिजर उ सिंहों के लिये. पिजर्; नर हैं. भीतर, भाहर किशर - गण गाते ;- पीकर ज्यों आलों का... ासव देखा ने. टेदिक पुल » दंघन में फेस आत्मा - बांधिव झुख पाते ।




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