हिंदी व्याकरण | Hindi Vyakarana

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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६ कौबुदी शन्यान्य सभी म्याकरणों की झपेक्ता श्रचिक व्यापक प्रामाणिक और शुद्ध दे । कैलाग मीम्त पिकाट श्रादि विदेशी लेखकों ने दिंदी-्याकर्ण की उत्तम पुस्तकें श्रॉगरेजों के लामार्थ श्रेगरेजी में लिखी हैं पर इनके अयों में किये गये विवेचनों की परीक्षा मैंने श्पने अर में नहीं की क्योंकि भाषा की शुद्धता की दडि से विदेशी लेखक पूर्णतया आामाणिक नहीं माने जा सकते । ऊपर दिंदी-व्याकर्थ का गत प्रायः सौ वर्षों का संधि इतिदाल दिया गया दे। इससे जाना जाता दें कि दिंदी-माषा के जितने ब्शकस्ण शाज तक हिंदी में लिखे गये हैं वे विशेष कर पाठशालात्ों के छोटे-ोटे विचारियों के लिए. निर्मित हुए हैं । उनमें बहुधा साधारण स्वूल नियम दो पाये जाते हैं जिससे भाषा को ब्यापकता पर पूरा पकारा नहीं पढ़ सता । शिक्षित समाज ने उनमें से किल्ली भी ब्याकस्थ को अभी तक विशेष रत से प्रामाखिक नहीं माना हे । दिंदीस्याकर्ण के इतिहास में एक विशेषता पद भी है कि श्न्य-माषा-मापी मारतीवों ने भी इस भाषा का व्याकरण लिखने का उद्योग किया दे जिससे इमारी माषा को ब्यापकता इसके पामािक ब्वाकरय की झावश्पकता शरीर साय दो दिंदी- भाषा बैवाकरों का श्रभाव शयवा उनको उदासीनता ्बनित दोतो दे । हिंदी-माषा के लिए यद एक बड़ा शुभ चिक् दे कि कुछ दिनों से दिंदी-माषी लेखकों विशेषकर शिवषकों का ्यान इसे विषय को श्र श्ाकृश्दो रहा दे । िंदी में भ्रनेक उप-भाषाओं के दोने तथा उर्दू के लाथ श्रनेक वर्षों से इसका संपर्क रइने के कारण इमारी भाषा की रचना शैली शमी तक हुवा इतनी श्रस्थिर दे कि इस माषा के वैवाकरण को ब्वापक नियम अलाने में कढिनाइयों का सामना करना पड़ता है । ये कठिनाइयों भाषा के स्वाभाविक संगठन से भी उस्पन्न होती हैं पर निरंकुश लेखक इन्हें श्रीर




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