प्रेम संगीत | Prem Sangeet

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Prem Sangeet by श्री भगवती चरण वर्मा - Shri Bhagwati Charan Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[७ 1 कहानी और उपन्यास तो आप लिखते ही दें ; किन्तु आप बड़ी ही ओजपूर्ण, मरमस्पर्शी तथा भावपूर्ण कविता करते हैं । लिरिक लिखनेवालोंमें आपका स्थान ऊँचा है। जब आप अपने अतुलनीय ठंगपर अपनी कविता पढ़ते हैं, तब एक प्रकारका आवेश और हृदयोन्मेष पैदा दो जाता है, श्रोता मन्त्रमुग्ध हो जाते हैं । यद्यपि आपके पढ़नेका ढंग अनूठा है ; किन्तु आपकी सफलताका वास्तविक कारण आपकी भावान्दोलन और आत्मप्रस्फुरण करनेवाली कविता है। छापेकी चोटसे स्तब्ध होकर भी वदद सजीवता और सुन्दरतासे दीप्तमान रदती है । आपकी कविताओंका पहला संकलन “मधुंकण' नामसे प्रकादित हुआ या । प्रस्तुत गीत-संप्रद दूसरा संकलन है । यद्यपि आपने अन्य विषयक अनेक लिरिक लिखे हैं ; किन्तु इसमें आपके प्रेम-गीतोंका ही संग्रह है । वर्माजीके प्रेम-सम्बन्धी विचार भी अपना दृष्टिकोण रखते हैं । फ़ारसी और उदूकी विचार-धारासे आपकी कल्पना प्रभावित है, और उसमें सूफिक और नवीन वेदान्तकी पुट है, जिससे उसमें एक विशेष चमक पैदा दो गई दै। यद्यपि प्रेमको आप शायद क्षणभंगुरताशील समझते हैं, तथापि उसे मोहक, मादक और लोकोत्तरानन्ददायक अनुभव करते हैं। आपका विचार-केन्द्र वैराग्यमूलक प्रतीत होता है। आप जौवनको झल्यता और असफलतामय समझते हैं । भाप कहते हैं कि प्रेम-मूर्तिके साक्षातसे :-- भरे हुए सूनेपन के तम में विद्युत की रेखा - सी असफलता के पट पर अंकित तुम आशा की लेखा - सी जब कि मिट रहा था मैं तिल-तिल सीमा का अपवाद लिए । अथवा मेरे सूने - से जग में तुम वैभव के स्पन्दन-सी । यद्दी नदीं, आपके जीवनरमें विद्वोहकी ज्वाल-माऊा है, जो अपनी तीघ्रताके कारण जीवनको क्षीण कर दी है । उसकी क्षीणताकों प्रबल करने अथवा उसको सह्य बनानेके लिए अपनी प्रेम-मूर्ति और प्रेमानुभवका आढान करते हैं देखिये :--




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