दोहावली तुलसीदास जी की | Dohavali tulsi Das Ji Ki

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Book Image : दोहावली तुलसीदास जी की  - Dohavali  tulsi Das Ji Ki

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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९ होचहार की बात परनी के ठक्त दोदों ने विप के घुसे थाणों का काम क्या । कुछ काल के लिये तुलसीदासजी के मन की दशा विधित्र हो गयी । तदुनन्तर श्रज्ञान पर ज्ञान का विजय टुश्आा । ज्ञान का पं उड़ा ढन्हें श्रपने दरों ्ोर भगवान श्रीरामनी की सौग्य भरूति देख पढ़ने लगी । वे मन ही मन अपनी धर्मपानी की भूरि भूरि प्रशंसा करने लगे श्र तत्वण वहाँ से ठठकर चल दिये | उनका नाना घरवालों से छिपा न रद्द सका । श्रत ठनका साला उनको मनाता हुशा बहुत दूर तक उनके साथ गया किन्तु सबेरा होने पर सी जब तुलसीदास न लौटे तब घिवश हो उनका साला लौट झाया । घर पर लौटकर भाई ने देखा बहिन श्रचेत पड़ी है । कुछ फाल के के अन्तर घद़िन को सूच्छां जय दूर हुई तथ उसने कड़ा-मेंरे का उदश्य श्रान पूरा हु । जब मेरे पति बन को श्वले गये तब मैं यहाँ रहकर क्या करूँगी में श्रच स्त्रगं के लिये प्रस्थान करूँगो। कहा नाता है कदकर उस साध्वी ने श्रपना नश्वर शरीर श्याग दिया 1 इघर मह हुमा और उबर तुलसीदास तीथेराज प्रभाग में घाये पर गइस्थाप्रम को त्याग साधु हो गये । तदुनस्तर ये श्योध्या गये और श्योष्या में कुछ दिनों रद श्रमण के लिये वहाँ से प्रस्थानित्त हुए । ट्रस यात्रा में श्ापने भारतवर्ष के प्रसिद्ध धामों को यात्रा की । अन्त मैं वे बदूरिकाश्रम में पहुँचे । बढ़ा से वे सानसरोचर रुपाचल तथा नोलाचल गये । घटी से फ्ैज्ञास पव॑त की परिक्रमा कर




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