योग प्रवाह | Yoga Pravah

Yoga Pravah by डॉ पीताम्बरदत्त बडध्वाल - Peetambardatt Bardhwalललिता प्रसाद नैथानी - Lalita Prasad Naithani

लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :

डॉ पीताम्बरदत्त बडध्वाल - Peetambardatt Bardhwal

No Information available about डॉ पीताम्बरदत्त बडध्वाल - Peetambardatt Bardhwal

Add Infomation AboutPeetambardatt Bardhwal

ललिता प्रसाद नैथानी - Lalita Prasad Naithani

No Information available about ललिता प्रसाद नैथानी - Lalita Prasad Naithani

Add Infomation AboutLalita Prasad Naithani

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
[घ ४ 3 ६ अन१२ ज्ञान गे सटी की वात कबीर रोरप की चीती १३ स॑ गीनाद कान की मुद्रा ७ अ- १ कवीरन गोरप कू जीत्यो थ तथा ७ अ- ७ श्री संप्रदाचारी ८ श्री गुरु सामानन्द्‌ जी नौसानन्द जी साथवाचारी चिपुपुस्वामी इससे यह अजुमान होता है कि यदद प्रति कबीर के जीवन काठ से भी कम से कम एक झाताब्दी बाद की तो अवश्य है मयोंकि तब तक कवीर के सम्बन्ध में वे परम्परा प्रसिद्ध हो गयी थीं जो उनके जीवनकाल में घटित नहीं हुई थीं क्योंकि कबीर 'और गोरख कदापि समकाठीन नहीं थे । इसी कारण इसके स्वामी राघवानन्द की रचना होने में भी सन्देह हो जाता है । स्वयं पुस्तिका के अनुसार चह रामानन्द को रवासी सघवानन्द का उपदेश है-- ७ भ० ऐश “श्री राघवानन्द स्वामी उचरन्वे श्री रासानन्द स्वामी सुनन्ते' इससे यह भी स्पष्ट दै कि राघवानन्द से अभिप्राय रामानन्द के शुरु ही से है किसी अन्य से नहीं । ऐसी रचनाएँ बहुधा शुरु की न होकर उनके दिप्य अथवा किसी अशिष्य की होती हैं। दोने को तो केवल कब्ीर-गोरस गोप्ीवाला प्रसंग भी पीछे से जुड़ा हुआ हो सकता है किन्तु सावधानी यहदी चाही है




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now