मुगल साम्राज्य की आर्थिक नीति | Mugal Samrajya ki Aarthik Niti

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Mugal Samrajya ki Aarthik Niti  by वन्दना त्रिपाठी - Vandana Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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। 12 प्रमुख उद्योग - विदेशी व्यापारियों द्वारा मुख्य जल एवं थल मार्गों के निकट नगरों का उल्लेख मिलता है । हर सरकार कं अन्तर्गत एक मुख्य नगर था । प्राय एक सरकार क॑ अन्तर्गत कई नगर होते थे । छोटे कस्बे में परगने का कार्यालय था। इस समय समृद्ध नगरों की अधिकता थी ये उन्नतिशील होते थे इनके द्वारा उद्योग व्यवसाय को भी हर प्रकार से सहायता प्राप्त थी । उद्योग व्यवसाय कई भागों में बटा हुआ था जिससे इनकी जानकारी प्राप्त करने में सुविधा हो । गुड़ को साफ करके चीनी व मिश्री बनाने का कार्य बंगाल गुजरात और पंजाब में सम्पन्न होता था । मिश्री का भाव चीनी से और चीनी का भाव गुड़ से अधिक था । मिश्री का दाम अधिक था अकबर के समय पॉच रूपये सेर मिश्री थी अतः धनी लोग ही मिश्री का प्रयोग करते थे साधारण लोग दवा के रूप में मिश्री का प्रयोग करते थे । अफीम बिहार और मालवा में बनती थी । इसका प्रयोग साधारणत मादक पदार्थों के रूप में और दवा बनाने के लिए किया जाता था । यह विदेशों को नियति होती थी । बयाना में नील का उत्पादन बड़ी मात्रा में होता था अन्य कई जगहों पर नील की खेती होती थी । अल्प आय के कुम्हार बढ़ई जुलाहा आदि कुटीर उद्योग के स्वामी थे। मिट्टी के सुन्दर वस्तुओं क॑ निर्माण हेतु चुनार काशी दिल्‍ली प्रसिद्ध था । मिट्टी के खिलौनों की मांग अधिक नहीं थी फिर भी उनका निर्माण सर्वोत्कृष्ट था । बढ़ई बारीकी के साथ-साथ साधारण काम भी करते थे । बढ़ई मकान में उपयोग हेतु सामग्री खेती हेतु सामग्री नाव चारपायी संदुक तख्त आदि भी निर्मित करते थे। राजदरबार एवं अमीरों हेतु सामान सर्वत्क्ष्ट कारीगरों द्वारा ही निर्मित होता था | इनके द्वारा सुन्दर नक्काशी वाली चारपायी नौकायें एवं मन्जुषाएँ निर्मित होती थी। 1000 मन से 6000 मन सामान तक का जहाज तथा नॉव बनाया जाता था जिसका उपयोग तटीय व्यापार हेतु किया जा सके । 30 000 हजार मन का भारवहन हेतु विशालकाय जलपोत हाजियों के उपयोग के लिए निर्मित किये गयेर। व्वाफाप्रशलासतलतवरतमततटतशरवदारगदा दब्दा 1- चोपडा पुरी दास भारत का सामाजिक सांस्कृतिक और आर्थिक इतिहास भाग-2 पृ0 98 2- चोपडा पुरी दास भारत का सामाजिक सांस्कृतिक और आर्थिक इतिहास भाग-2 पृ 102 3- चोपड़ा पुरी दास भारत का सामाजिक सांस्कृतिक और आर्थिक इतिहास भाग-2 पृ0 105




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